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२. धनजीवी, उद्योगपति, व्यापारी और साहू- वाटर का इंजेक्शन लगा अपनी फोस वसूल करने कार-इस वर्ग में वे सब श्रावक-श्राविका तथा में डॉक्टर अपने आपको कृतकृत्य समझ अन्य धनाढ्य श्रेणी के लोग समाविष्ट हैं जिनका आज बिना पैसे दिये मजाल है कोई मरीज ऑपरेतीर्थकर, तथागत, भगवान्, अल्लाह या गॉड लाभ शन थियेटर में पहुँच जाये अथवा उचित औषधि ) है । अनुचित लाभ कमाने की होड़ में ये कम अस्पताल से पा जाये । दवायें चोरी से बेचना या तोलते हैं, चोरी का माल औने-पौने दामों में खरी- मुह देखकर बड़ों को तिलक लगाने के फलस्वरूप दते हैं, चोरी करवाते हैं, वनस्पति में गाय की उन्हें महंगी दवायें मुफ्त देकर अपने लिए अन्य चर्बी, हल्दी में पीली मिट्री, धनिये में भूसा आदि सविधायें जटाना डॉक्टरी का पवित्र व्यवसाय बन मिलाते हैं। यही नहीं नकली दवा निर्माण और गया है। अस्पताल में जिम्मेदारी डयूटी से न कर उनमें मिलावट कर ये जन-जीवन से खिलवाड़ घर पर क्लीनिक चला, दोनों हाथों से धन बटोरना करते हैं। दूसरों को येन-केन-प्रकारेण ठगना इनका मुख्य व्यवसाय बन गया है। वकील दोनों इनका व्यापारिक कौशल बन गया है। ब्याज की पक्षों से मिलकर जजों को यथायोग्य दक्षिणा देकर ऊंची दर ऐंठकर महाराज साहब या मुनि या साधु निर्णय अपने पक्ष में करवाने में माहिर होते जा रहे कि की शरण में जा शांति खोजने का नाटक रचते हैं। है। न्यायालयों में फैसले कानून के अनुसार नहीं टैक्स चोरी इनका प्रिय खेल है और बेईमानी वरन् कितनी रकम कौन दे सकता है और जज को । शगल ।
क्रय कर सकता है उस पर प्रायः निर्भर होते जा रहे । ३. रिश्वतजीवी राजकीय अराजकीय कर्मचारी हैं । बाबुओं को भूर-सी बँटवाने में भी वकीलों का और अधिकारी-आज के समाज में ऐसा कोई हाथ रहता है ताकि वे उनकी जायज-नाजायज विभाग शायद ही बचा हो जो किसी न किसी इच्छाओं की पूर्ति कर सकें । इंजीनियर और ठेकेभ्रष्ट आचरण से अछता हो। शासकीय और दारा की साठ-गाँठ रेत से ढहने वाले बाँधों-पलोंअशासकीय संस्थान भ्रष्टाचार के ज्वलंत अड्डे मका
के मकानों में कहर ढा रही है। बड़े-बड़े खेतों के बनते जा रहे हैं । रिश्वत आज के युग में शिष्टा
स्वामी जमींदार स्वयं तो हल की मूठ नहीं पकड़ते चार बन गयी है। जितनी बड़ी सीट उतना बड़ा
पर खेतिहर मजदूरों को बन्धुआ बनाकर बेगार में 70 दाम । बिना पैसे दिये मजाल है कि फाइल एक
जोत गुलछरें उड़ाते हैं । सब चोर हैं । चोरी करने | इंच भी आगे खिसक जाये । समय पर काम नहीं के ढग अलग-अलग हैं। करना इनका जन्मसिद्ध अधिकार है। ठीक भी है, ५. चन्दाजीवी नेतागण-विभिन्न बहाने लेकर यदि समय पर आसानी से जनता का कार्य निपट ।
नेताजी चन्दा बटोरने में दिन-रात ल जाये तो उन्हें क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मन्त्री, विधायक तथा सांसद भी इस कार्य में पीछे 8 इनको रिश्वत चुपड़ी रोटी डालें। कामचोरी देश नहीं हैं । अपना सर्वस्व जनता के लिए न्यौछावर | को रसातल में ढकेल रही है । पर परवाह किसे है ? कर उसकी सेवा करने के दिन लद गये । आज सेठों । छोटे कर्मचारी से अपना-अपना शेयर वसूल कर और पूजीपतियों के हाथों कठपुतली-सा नाच न बड़े-बड़े अधिकारी सीधे भी व्यापारी और उद्योग
नाचने वाले तथा उच्च अधिकारियों के माध्यम से पतियों से बहुत बड़ा अंशदान वसूलने में अहर्निश अपनी चौथ वसूलने वाले ये नेतागण रातोंरात (छ लगे हुए हैं।
___लखपति और यदि चुन लिए गए तो अपने कार्यकाल I ___४. अवैध आयजीवी, डाक्टर, वकील, इन्जी- में सात पीढ़ियों तक चलने वाला धन बटोर लेते र नियर, ठेकेदार व जमींदार-मुर्दे को डिस्टिल हैं। चोर दरवाजा इनका साहूकारी का प्रमाण है।
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 38 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 60
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