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________________ -यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्म - फलस्वरूप क्षतिपूर्ति के रूप में लगभग 70 लाख डालर का शरीर में स्वयं स्वस्थ होने की क्षमता है - भुगतान करना पड़ा। लगभग 60 से 70 प्रतिशत इन दवाइयों आज हमारे सारे सोच का आधार जो प्रत्यक्ष है, जो अभी का निर्माण करने वाली कंपनियाँ, दुष्प्रावों की क्षतिपूर्ति का सामने है. उसके आगे-पीछे जाता ही नहीं। सही आस्था लक्ष्य - भुगतान माँगने वालों के कारण बंद हो रही हैं। ऐसी दवाइयों का प्राप्ति की प्रथम सीढ़ी है। रोग कहीं बाजार में नहीं मिलता। सेवन कर अथवा अस्पतालों का निर्माण और संचालन की कर्तव्य-बोध हेत चिंतन करने की प्रेरणा देता है। चेतावनी देता प्रेरणा देकर कहीं हम बूचड़खानों को तो अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन है। परंतु सही दृष्टि न होने से हम उसको शत्र मानते हैं। हम स्वप्न नहीं दे रहे हैं। जब तक पाप से नहीं डरेंगे, धर्म की तरफ तीव्र में हैं। बेहोशी में जी रहे हैं। दर्द उस बेहोशी को भंग कर हमें गति से कैसे बढ़ पाएँगे? ठीक उसी प्रकार जब तक हिंसा से सावधान करता है। रोगी सुनना नहीं चाहता है। उसको दबाना निर्मित दवा लेने का हमारा मोह भंग नहीं होगा, न तो हम पूर्ण चाहता है। उपचार स्वयं के पास है और खोजता है बाजार में, स्वस्थ बनेंगे और न प्रभावशाली, स्वावलंबी व अहिंसात्मक डाक्टर एवं दवाइयों के पास। जितना डाक्टर एवं दवा में विश्वास चिकित्सा-पद्धतियों को सीखने, समझने एवं अपनाने का मानस है, उतना अपने आप पर, अपनी छिपी क्षमताओं पर नहीं, यही ही बना पाएँगे। आज चिकित्सा के लिए जितना जानवरों पर तो मिथ्यात्व हैं। क्या वह कभी चिंतन करता है कि मनुष्य के अत्याचार हो रहा है, उतना शायद और किसी कारण से नहीं। अलावा अन्य चेतनाशील प्राणी अपने आपको कैसे ठीक करते क्योंकि जानवरों के अवयवों की जितनी ज्यादा कीमत दवाई हैं? क्या स्वस्थ रहने का ठेका दवा एवं डाक्टरों के संपर्क में व्यवसाय वाले दे रहे हैं, उतनी अन्य कोई व्यवसाय नहीं देते। रहने वालों ने ही ले रखा है? वस्तुतः हमें इस बात पर विश्वास जब दवाइयों के लिए जानवर कटेंगे तो मांसाहार को कोई रोक करना होगा कि शरीर ही अपने आपको स्वस्थ करता है, अच्छी नहीं सकता। सम्यग्दर्शन में आस्था रखने वाले प्रत्येक साधक से अच्छी दवा और चिकित्क तो शरीर को अपना कार्य करने में सहयोग मात्र देता है। जिसका शरीर सहयोग करेगा वही स्वस्थ एवं अहिंसा-प्रेमियों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा को होगा। स्वास्थ्य के संबंध में यही दृष्टि सम्यक्दर्शन है, सच्चा प्रोत्साहन देने वाली प्रवृत्तियों से अपने को अलग रखना चाहिए। ज्ञान है तथा संपूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करने का मूलभूत आधार भी। arbariramidrodroidroMidmooroordar666-436066A6A6A6omw260X6A60-60-60-62-worstand Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210021
Book TitleAgyan Sabhi Rogo ka Mul Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChanchalmal Choradiya
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ceremon
File Size584 KB
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