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અગવિજ્જા પ્રકીર્ણ ક
रह गई हैं। मैं चाहता हूँ कि कोई विद्वान् इस वैज्ञानिक विषयका अध्ययन करके इसके मर्मका उद्घाटन करे ।
ऊपर कहा गया उस मुताबिक कोई वैज्ञानिक दृष्टिवाला फलादेशको अपेक्षा इस शास्त्रका अध्ययन करे तो यह ग्रन्थ बहुत कीमती है - इसमें कोई फर्क नहीं है । फिर भी तात्कालिक दूसरी दृष्टिसे अगर देखा जाय तो यह ग्रन्थ कई अपेक्षासे महत्त्वका है । आयुर्वेदज्ञ, वनस्पतिशास्त्री, प्राणीशास्त्री, मानसशास्त्री, समाजशास्त्री, ऐतिहासिक वगैरहको इस ग्रन्थमें काफी सामग्री मिल जायगी । भारतके सांस्कृतिक इतिहास प्रेमीयोंके लिये इस ग्रन्थमें विपुल सामग्री भरी पड़ी है। प्राकृत और जैन प्राकृत व्याकरणज्ञों के लिये भी सामग्री कम नहीं है । भविष्य में प्राकृत कोशके रचयिता को इस ग्रन्थका साधन्त अवलोकन नितान्त आवश्यक होगा ।
सांस्कृतिक सामग्री
इस अंगविधा ग्रन्थका मुख्य सम्बन्ध मनुष्योंके अंग एवं उनकी विविध क्रिया- चेष्टाओंसे होनेके कारण इस ग्रन्थ में अंग एवं क्रियाओं का विशद रूपमें वर्णन है । ग्रन्थकर्त्ताने अंगों के आकारप्रकार, वर्ण, संख्या, तोल, लिङ्ग, स्वभाव आदिको ध्यान में रखकर उनको २७० विभागों में विभक्त किया है [ देखो परिशिष्ट ४ ] | मनुष्योकी विविध चेष्टाएँ, जैसे कि बैठना, पर्यस्तिका, आमर्श, अपश्रय-आलम्बन टेका देना, खड़ा रहना, देखना, हँसना, प्रश्न करना, नमस्कार करना, संलाप, आगमन, रुदन, परिदेवन, क्रन्दन, पतन, अभ्युत्थान, निर्गमन, प्रचलायित, जम्भाई लेना, चुम्बन, आलिंगन, सेवित आदि; इन चेष्टाओंका अनेकानेक भेद-प्रकारोंमें वर्णन भी किया है । साथमें मनुष्य के जीवन में होनेवाली अन्यान्य क्रिया- चेष्टाओंका वर्णन एवं उनके एकार्थकों का भी निर्देश इस ग्रन्थमें दिया है | इससे सामान्यतया प्राकृत वाङ्मयमें जिन क्रियापदों का उल्लेख संग्रह नहीं हुआ है उनका संग्रह इस ग्रंथ में विपुलतासे हुआ है, जो प्राकृत भाषाकी समृद्धिकी दृष्टिसे बड़े महत्त्वका है [ देखो तीसरा परिशिष्ट ] |
सांस्कृतिक दृष्टिसे इस ग्रंथ में मनुष्य, तिर्यंच अर्थात् पशु-पक्षी क्षुद्र जन्तु, देव-देवी और वनस्पतिके साथ सम्बन्ध रखनेवाले कितने ही पदार्थ वर्णित हैं [ देखो परिशिष्ट ४ ] ।
इस ग्रन्थमें मनुष्यके साथ सम्बन्ध रखनेवाले अनेक पदार्थ, जैसे कि – चतुर्वर्ण विभाग, जाति विभाग, गोत्र, योनि-अटक, सगपण सम्बन्ध, कर्म-धंधा - व्यापार, स्थान- अधिकार, आधिपत्य, यान - वाहन, नगर-ग्राम- मडंब - द्रोणमुखादि प्रादेशिक विभाग, घर-प्रासादादिके स्थान विभाग, प्राचीन सिक्के, भाण्डोपकरण, भाजन, भोज्य, रस, सुरा आदि पेय पदार्थ, वस्त्र, आच्छादन, अलंकार, विविध प्रकार के तैल, अपश्रय-टेका देनेके साधन, रत सुरत क्रीडाके प्रकार, दोहद, रोग, उत्सव, वादित्र,
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