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________________ १४७ प्रारब्ध-विचार स्थितिकी बात स्वप्नमें देखे हुए पदार्थोंसे जगे हुए पुरुषका सम्बन्ध बतानेके समान अनुचित है। न हि प्रबुद्धः प्रतिभासदेहे देहोपयोगिन्यपि च प्रपञ्चे। करोत्यहन्तां ममतामिदन्तां किन्तु स्वयं तिष्ठति जागरेण ॥४५६॥ जगा हुआ पुरुष स्वप्नके प्रातिभासिक देह तथा उस देहके उपयोगी स्वप्न-प्रपश्चमें कभी अहंता, ममता और इदंता ( मैंपन, मेरापन और यहपन ) नहीं करता । वह तो केवल जाग्रत्भावसे ही रहता है। न तस्य मिथ्यार्थसमर्थनेच्छा.com न सङ्ग्रहस्तजगतोऽपि दृष्टः । तत्रानुवृत्तिर्यदि चेन्मृषार्थे ननिद्रया मुक्त इतीष्यते ध्रुवम् ॥४५७॥ उसको न तो मिथ्या वस्तुओंको सिद्ध करनेकी इच्छा होती है और न उसके पास सांसारिक पदार्थों का संग्रह ही देखा जाता है । यदि फिर भी उसकी मिथ्या पदार्थों में प्रवृत्ति रहे तो यह निश्चय है कि वास्तवमें उसकी नींद टूटी ही नहीं है। 'तद्वत्परे ब्रह्मणि वर्तमानः सदात्मना तिष्ठति नान्यदीक्षते । स्मृतियथा “खविलोकितार्थे . .... · तथा विदः प्राशनमोचनादौ ४५८॥ IN http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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