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________________ विवेक चूडामणि १४० कहते हैं। यह चिन्मात्र-वृत्ति जिसकी स्थिर हो जाती है वही जीवन्मुक्त कहा जाता है। यस्य स्थिता भवेत्प्रज्ञा यस्यानन्दो निरन्तरः । प्रपञ्चो विस्मृतप्रायः स जीवन्मुक्त इष्यते ॥४२९॥ जिसकी प्रज्ञा स्थिर है, जो निरन्तर आत्मानन्दका अनुभव करता है और प्रपञ्चको भूला-सा रहता है वह पुरुष जीवन्मुक्त कहलाता है। लीनधीरपि जागर्ति यो जाग्रद्धर्मवर्जितः । बोधो निर्वासनो यस्य स जीवन्मुक्त इष्यते ॥४३०॥ ___ वृत्तिके लीन रहते हुए भी जो जागता रहता है किन्तु वास्तवमें जो जागृतिके धर्मोंसे रहित है* तथा जिसका बोध सर्वथा वासनारहित है वह पुरुष जीवन्मुक्त कहलाता है । शान्तसंसारकलनः कलावानपि निष्कलः । यः सचित्तोऽपि निश्चिन्तः स जीवन्मुक्त इष्यते ॥४३१॥ जिसकी संसार-वासना शान्त हो गयी है, जो कलावान् होकर भी कलाहीन है अर्थात् व्यवहारदृष्टिमें ऊपरसे विकारवान् वृत्तिके लीन रहते हुए भी जो जागता रहता है। इसका अभिप्राय यह है कि यद्यपि उसका चित्त सम्पूर्ण दृश्य पदार्थोंका बाध करके निरन्तर ब्रह्ममें लीन रहता है तथापि वह सोये हुए पुरुषके समान संशाशून्य नहीं हो जाता, सब व्यवहार यथावत् करता रहता है। किन्तु व्यवहार करते हुए भी उसे स्वप्नवत् समझनेके कारण उसकी अन्य पुरुषोंके समान दृश्य पदार्थोंमें आस्था नहीं होती । इसलिये 'वास्तवमें वह जागतिके धर्मोसे रहित है।' http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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