SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३१ प्रपञ्चका बाध 1 स्वात्मन्यारोपिता शेषाभासवस्तुनिरासतः परं ब्रह्म स्वयमेव पूर्णमद्वयमक्रियम् ॥ ३९८ ॥ अपने आत्मामें आरोपित समस्त कल्पित वस्तुओंका निरास कर देनेपर मनुष्य स्वयं अद्वितीय, अक्रिय और पूर्ण परब्रह्म ही है । सति चित्तवृत्तौ समाहितायां परात्मनि ब्रह्मणि निर्विकल्पे । न दृश्यते कश्चिदयं विकल्पः प्रपश्चका बाध· प्रजल्पमात्रः परिशिष्यते ततः ।। ३९९|| निर्विकल्प परमात्मा परब्रह्ममें चित्तवृत्तिके स्थिर हो जानेपर यह दृश्य विकल्प कहीं भी दिखायी नहीं देता । उस समय यह केवल वाचारम्भण ( वाणीकी बकवाद ) मात्र ही रह जाता है । असत्कल्पो विकल्पोऽयं विश्वमित्येकवस्तुनि । निर्विकारे निराकारे निर्विशेषे भिदा कुतः ||४००|| उस एक वस्तु ब्रह्ममें यह संसार मिथ्या वस्तुके सदृश . कल्पनामात्र है । भला निर्विकार, निराकार और निर्विशेष वस्तुमें भेद कहाँसे आया ? द्रष्टृदर्शनदृश्यादिभावशून्यैकवस्तुनि निर्विकारे निराकारे निर्विशेषे मिदा कुतः ॥ ४०२ ॥ उस द्रष्टा, दृश्य और दर्शन आदि भावोंसे शून्य, निर्विकार, निराकार और निर्विशेष एक वस्तुमें भला भेद कहाँसे आया ? http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy