SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवेक-चूडामणि सुप्तस्य नो जागरणं न जाग्रतः स्वमस्तयोमिनगुणाश्रयत्वात् ॥३३८॥ जिसकी देह आदि अनात्मवस्तुओंमें आसक्ति है उसकी मुक्ति नहीं हो सकती और जो मुक्त हो गया है उसका देहादिमें अभिमान नहीं हो सकता। जैसे सोये हुए पुरुषको जागृतिका अनुभव नहीं हो सकता और जाग्रत् पुरुषको स्वप्नका अनुभव नहीं हो सकता, क्योंकि ये दोनों अवस्थाएँ भिन्न गुणोंके आश्रय रहती हैं। आत्मनिष्ठाका विधान . अन्तर्बहिः स्वं स्थिरजङ्गमेषु www ज्ञानात्मनाधारतया विलोक्य । त्यक्ताखिलोपाधिरखण्डरूपः पूर्णात्मना यः स्थित एष मुक्तः ॥३३९॥ जो समस्त स्थावर-जङ्गम पदार्थों के भीतर और बाहर अपनेको ज्ञानखरूपसे उनका आधारभूत देखकर समस्त उपाधियोंको छोड़कर अखण्ड-परिपूर्णसे स्थित रहता है, वही मुक्त है। सर्वात्मना बन्धविमुक्तिहेतुः सर्वात्मभावाम परोऽस्ति कश्चित् । दृश्याग्रहे सत्युपपद्यतेऽसौ सर्वात्मभावोऽस्य सदात्मनिष्ठया ॥३४०॥ संसार-बन्धनसे सर्वथा मुक्त होनेमें सर्वात्म-भाव ( सबको आत्मारूप देखनेके भाव ) से बढ़कर और कोई हेतु नहीं है। http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy