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________________ असत् - परिहार बाह्य विषयोंका चिन्तन अपने दुर्वासनारूप फलको ही उत्तरोत्तर बढ़ाता है इसलिये विवेकपूर्वक आत्मखरूपको जानकर बाह्य विषयोंको छोड़ता हुआ नित्य आत्मानुसन्धान ही करता रहे । बाह्ये निरुद्धे मनसः प्रसन्नता मनः प्रसादे भवबन्धनाशो बहिर्निरोधः पदवी विमुक्तेः ॥ ३३६ ॥ परमात्मदर्शनम् । तस्मिन्सुदृष्टे बाह्य पदार्थोंका निषेध कर देनेपर मनमें आनन्द होता है और मनमें आनन्दका उद्रेक होनेपर परमात्माका साक्षात्कार होता है और उसका सम्यक् साक्षात्कार होनेपर संसारबन्धनका नाश हो जाता बाह्य वस्तुओंका निषेध 1 १०९ मुक्तिका मार्ग है 1 कः पण्डितः सन्सदसद्विवेकी श्रुतिप्रमाणः परमार्थदर्शी । कुर्यादसतोऽवलम्बं जानन्हि स्वपातहेतोः शिशुवन्मुमुक्षुः ||३३७|| सत्-असत् वस्तुका विवेकी, श्रुतिप्रमाणका जाननेवाला, परमार्थ- तत्त्वका ज्ञाता ऐसा कौन बुद्धिमान् होगा जो मुक्तिकी इच्छा रखकर भी जान-बूझकर बालकके समान अपने पतनके हेतु असत् पदार्थोंका ग्रहण करेगा । देहादिसंसक्तिमतो न मुक्तिमुक्तस्य देहाद्यभिमत्यभावः । http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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