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________________ १०१ .. क्रिया, चिन्ता और वासनाका त्याग ___ यह प्रबल अहंकार जड-मूलसे नष्ट कर दिया जानेपर भी यदि एक क्षणमात्रको चित्तका सम्पर्क प्राप्त कर ले तो पुनः प्रकट होकर सैकड़ों उत्पात खड़े कर देता है, जैसे कि वर्षाकालमें वायुसे संयुक्त हुआ मेघ । क्रिया, चिन्ता और वासनाका त्याग निगृह्य शत्रोरहमोऽवकाशः कचिन्न देयो विषयानुचिन्तया । स एव सञ्जीवनहेतुरस्य प्रक्षीणजम्बीरतरोरिवाम्बु ॥३११॥ इस अहंकाररूप शत्रुका निग्रह कर लेनेपर फिर विषयचिन्तनके द्वारा इसे शिर उठानेका अवसर कभी न देना चाहिये, क्योंकि नष्ट हुए जम्बीरके वृक्षके लिये जलके समान इसके पुनरुज्जीवन (फिर जी उठने ) का कारण यह विषय-चिन्तन ही है। देहात्मना संस्थित एव कामी विलक्षणः कामयिता कथं स्यात् । अतोऽर्थसन्धानपरत्वमेव भेदप्रसक्त्या भवबन्धहेतुः ॥३१२॥ जो पुरुष देहात्म-बुद्धिसे स्थित है वही कामनावाला होता है। जिसका देहसे सम्बन्ध नहीं है, वह विलक्षण आत्मा कैसे सकाम हो सकता है ? इसलिये भेदासक्तिका कारण होनेसे विषय-चिन्तनमें लगा रहना ही संसार-बन्धनका मुख्य कारण है । http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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