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________________ अहंपदार्थ निरूपण जिसमें यह जगत्का आभास दर्पणमें प्रतिबिम्बित नगरके समान प्रतीत हो रहा है, वह ब्रह्म ही मैं हूँ, ऐसा जान लेनेपर तुम कृतकृत्य हो जाओगे। यत्सत्यभूतं तदेत्य ॥२९३॥ जो चेतन, अद्वितीय, आनन्दखरूप और निष्क्रिय ब्रह्म सत्यस्वरूप तथा अपना आद्य ( पहला - मूल ) स्वरूप है, उसको प्राप्त होकर नटके समान धारण किये इस शरीररूपी मिथ्या वेषकी आस्था त्याग दो । Apr di.com निजरूपमाद्यं चिदद्वयानन्दमरूपमक्रियम् मिथ्याव पुरुत्सृजैतच्छैलूषवद्वेषमुपात्तमात्मनः अहंपदार्थ-निरूपण सर्वात्मना दृश्यमिदं नैवाहमर्थः जानाम्यहं सर्वमिति प्रतीतिः अहंपदार्थस्त्वहमादिसाक्षी 1 मृषैव क्षणिकत्वदर्शनात् । कुतोऽहमादेः क्षणिकस्य सिध्येत् ॥ २९४ ॥ यह दृश्य - जगत् सर्वथा मिथ्या ही है । इसकी क्षणिकता देखने में आती है, इसलिये यह अहंपदार्थ नहीं हो सकता । अतः इन क्षणिक अहंकारादिको 'मैं सब कुछ जानता हूँ' - ऐसी प्रतीति कैसे हो सकती है ? - नित्यं सुषुप्तावपि भावदर्शनात् । http://www.ApniHindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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