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________________ मातापित्रोर्मलोद्भुतं मलमांसमयं वपुः । त्यक्त्वा चाण्डालवडूरं ब्रह्मीभूय कृती भव ॥२८॥ माता-पिताके मलसे उत्पन्न तथा मल-मांससे भरे हुए इस शरीरको चाण्डालके समान दूरसे ही त्याग कर ब्रह्मभावमें स्थित होकर कृतकृत्य हो जाओ। घटाकाशं महाकाश इवात्मानं परात्मनि । विलाप्याखण्डमावेन तूष्णीं भव सदा मुने ॥२८९॥ हे मुने ! [ घटका नाश होनेपर ] जैसे घटाकाश महाकाशमें मिल जाता है, वैसे ही जीवात्माको परमात्मामें लीन करके सर्वदा अखण्डभावसे मौन होकर स्थित रहो। खप्रकाशमधिष्ठानं स्वयंभूय सदात्मना । ब्रह्माण्डमपि पिण्डाण्डं त्यज्यतां मलभाण्डवत् ॥२९॥ जगत्का अधिष्ठान जो स्वयंप्रकाश परब्रह्म है, उस सत्खरूपसे खयं एक होकर पिण्ड और ब्रह्माण्ड दोनों उपाधियोंको मलसे भरे हुए भाण्डके समान त्याग दो। चिदात्मनि सदानन्दे देहारूढामहंधियम् । निवेश्य लिङ्गमुत्सृज्य केवलो भव सर्वदा ॥२९१॥ देहमें व्याप्त हुई अहंबुद्धिको नित्यानन्दवरूप चिदात्मामें स्थित करके लिङ्ग-शरीरके अभिमानको छोड़कर सदा अद्वितीयरूपसे स्थित रहो। यत्रैष जगदामासो दर्पणान्तः..पुरं यथा । तहमाहमिति ज्ञात्वा कृतकृत्यो भविष्यसि ॥२९२॥ http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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