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________________ सत्त्वगुण सत्त्वगुण सत्त्वं विशुद्धं जलवत्तथापि ताभ्यां मिलित्वासरणाय कल्पते । यत्रात्मविम्बः प्रतिविम्बितः सन् प्रकाशयत्यक इवाखिलं जडम् ॥११९।। सत्त्वगुण जलके समान शुद्ध है, तथापि रज और तमसे मिलनेपर वह भी पुरुषके संसार-बन्धनका कारण होता है। इसमें प्रतिबिम्बित होकर आत्मबिम्ब सूर्यके समान समस्त जड पदार्थोंको प्रकाशित करता है। मिश्रस्य सत्त्वस्य भवन्ति · धर्मा www. स्त्वमानिताद्या नियमा यमायाः। श्रद्धा च भक्तिश्च मुमुक्षुता च दैवी च सम्पत्तिरसनिवृत्तिः ॥१२०॥ अमानित्व आदि, यम-नियमादि, श्रद्धा, भक्ति, मुमुक्षुता, दैवी-सम्पत्ति तथा असत्का त्याग-ये मिश्र सत्त्वगुणके धर्म हैं। विशुद्धसत्त्वस्य गुणाः प्रसादः । खात्मानुभूतिः परमा प्रशान्तिः । तृप्तिः प्रहर्षः परमात्मनिष्ठा यया सदानन्दरसं समृच्छति ।१२१॥ प्रसन्नता, आत्मानुभव, परमशान्ति, तृप्ति, आत्यन्तिक आनन्द और परमात्मामें स्थिति-ये विशुद्ध सत्त्वगुणके धर्म हैं, जिनसे मुमुक्षु नित्यानन्दरसको प्राप्त करता है। http://www.Apnihindi.com
SR No.100007
Book TitleVivek Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankaracharya, Madhavanand Swami
PublisherAdvaita Ashram
Publication Year
Total Pages445
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size19 MB
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