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विवेक-चूडामणि तयोविवेकोदितबोधवहि
रज्ञानकार्य प्रदहेत्समूलम् ॥४९॥ • तुझ परमात्माका अनात्म-बन्धन अज्ञानके कारण ही है और उसीसे तुझको [जन्म-मरणरूप 1 संसार प्राप्त हुआ है। अतः उन ( आत्मा और अनात्मा ) के विवेकसे उत्पन्न हुआ बोधरूप अग्नि अज्ञानके कार्यरूप संसारको मूलसहित भस्म कर देगा।
प्रश्न-निरूपण
शिष्य उवाच कृपया श्रूयतां स्वामिन्प्रश्नोऽयं क्रियते मया । तदुत्तरमहं श्रुत्वा कृतार्थः स्यां भवन्मुखात् ॥५०॥
शिष्य-हे खामिन् ! कृपया सुनिये; मैं यह प्रश्न करता हूँ। इसका उत्तर आपके श्रीमुखसे सुनकर मैं कृतार्थ हो जाऊँगा । को नाम बन्धः कथमेष आगतः
कथं प्रतिष्ठास्य कथं विमोक्षः । कोऽसावनात्मा परमः क आत्मा
तयोविवेकः कथमेतदुच्यताम् ॥५१॥ बन्धन क्या है ? यह कैसे हुआ ? इसकी स्थिति कैसे है ! और इससे मोक्ष कैसे मिल सकता है ? अनात्मा क्या है ? परमात्मा किसे कहते हैं ? और उनका विवेक कैसे होता है ? कृपया यह सब कहिये ।।
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