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१७ - सौरी और बच्चा
पिछले प्रकरणों के लिखने का मेरा उद्देश्य यही है कि साधारण रोगों के कारण और उनके उपचार का कुछ ज्ञान प्रायः सर्व- साधारण को हो जाय । हमें पूर्ण विश्वास है कि वे मनुष्य जिन्हें सर्वदा कोई न कोई रोग घेरे ही रहते हैं और जो मृत्यु के नाम से डरते हैं उनको किसी तरह की पुस्तक क्यों न दी जाय, वे डाक्टरों की शरण लिये बिना कदापि नहीं रहेंगे हालांकि मैं इसके 'विरुद्ध हूँ | मैं यह भी कह सकता हूँ कि बहुत थोड़े लोग ऐसे होंगे जो प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा अपने रोगों को अच्छा करके सर्वदा के लिए रोगमुक्त होने का उद्योग करते हैं। जो ऐसा करेगें उन्हें इस बात का अनुभव होगा कि इन उपचारों और नियमों से बहुत - लाभ होता है । इस पुस्तक को समाप्त करने के पहले हम कुछ मोटी-मोटी बातें और बच्चे की देख-रेख के विषय में बतलायेंगे । साथ ही कुछ आकस्मिक घटनाओं के बारे में भी लिखेंगे । पशुओं के बारे में हम कुछ नहीं जानते कि प्रसवकाल में उन्हें कुछ पीड़ा होती है या नहीं। किन्तु पूर्ण स्वस्थ स्त्री को तो प्रसरकाल में पीड़ा होनी चाहिए। देहात में बहुतेरी स्त्रियाँ प्रसव की पीड़ा की कुछ परवा नहीं करतीं और अन्तिम समय तक अपना काम करती हैं। बहुतेरी मजदूरी करने वाली स्त्रियों को प्रसव के थोड़े ही दिन बाद मजदूरी करते देखा जाता है । तब क्या कारण है कि शहर और कस्बे की स्त्रियों को ही प्रसव के समय इतनी पीड़ा होती है ? क्या कारण है कि उन्हें प्रसव के पूर्व और पश्चात् उपचार की विशेष आवश्यकता पड़ती है ।
उत्तर बहुत आसान और स्पष्ट है। -कृतिक जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सहन साधारणतः स्वास्थ्य सम्बन्धो प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध
शहर को स्त्रियों को अप्राउनका खान-पान, रहना