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उसने भी अपने पिता के पास जा कर शमशेर बहादुरकी भाँति अपना हिस्सा माँगा ।
वृद्धने जवाब दिया :- "बेटा ! कमाई करके तू तो घरमें एक पैसा भी नहीं लाया । तेरे भाई मूर्खराजकी महनत कर करके कमर तक झुक गई । अतः तुझे हिस्सा दे कर मूर्ख पर और मोंघी पर अन्याय कैसे करूँ ?"
धनवंतरीने कहा :- "मूर्ख तो वास्तव में मूर्ख ही है । उसका तो ब्याह भी नहीं होगा । उसे कौन छोकरी देगा ? और मोंवीको खाना पीना मिला तो बस है।" फिर उसने मूर्खराज की तरफ देख कर कहा:"मूर्ख, क्या तू मुझे आधा हिस्सा नहीं देगा ? मैं हल आदि कोई चीज नहीं माँगता । जानवरोंमेंसे सिर्फ काला घोड़ा माँगता हूँ। और नाजमें से आधा हिस्सा । "
मूर्खराजने हँस कर उत्तर दिया : - " अच्छा भाई तू इसीसे प्रसन्न होता है तो ले जा । मैं और भी ज्यादा परिश्रम कर लूँगा ।"
इस तरह धनवंतरी भी हिस्सा ले गया । मर्खराज अपने खेत में कठिन परिश्रम करता । बहरी बहिन यथा शक्ति उसकी सहायता करती । मातापिता तो वृद्ध हो गये थे, इसलिए उनकी कमाई - का घरमें कुछ भी नहीं रहा था । जो कुछ था वह मूर्खराज की कमाई - हीका था । तो भी उसने शमशेर बहादुर और धनवंतरीको हिस्सा दे दिया । मूर्खराज के पास विशेष कुछ न रहा । उसके पास एक बूढ़ा बैल रहा था । उसीसे वह जितना हो सकता था खेतमें काम लेता था; बाकी काम अपने हाथोंसे करता था । दिनभर कठोर परिश्रम करता और जैसे तैसे करके अपने मातापिताका तथा अपनी गूँगी - हरी बहना भरणपोषण करता था ।