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स्वास्थ्य का नियम बतलाता है कि जिस स्त्री का पुरुष मर गया हो या जिस पुरुष की स्त्री मर गई हो वह दोबारा व्याह न करे। कुछ डाक्टरों को राय है युवा स्त्री-पुरुष को वीय-पात का अवसर मिलना चाहिए और कितने ही इसके विपरीत राय देते हैं; अब अगर हम यह सोचकर कि एक पक्ष हमारा समर्थन करता है-अपने वीर्य का नाश करें, यह अनुचित है। मैं अपने निजी अनभव के आधार पर निःसंकोच कहूँगा कि वीय-पात स्वास्थ्य के लिए बड़ा ही हानिकारक है और ऐसा करना निरी मूर्खता है। बहुत दिनों का संचित किया हुआ वीर्य यदि एक बार भी नष्ट हो जाता है तो उसको पूर्ति करते कुछ दिन लग जाते हैं और फिर भी पूरा नहीं हो पाता। टूटा हुआ शीशा जोड़ा जा सकता है और उससे काम भी लिया जा सकता है लेकिन फिर भी वह टूटा हुआ ही कहा जायगा।
पहिले बतलाया जा चुका है कि वीर्य-रक्षा के लिए साफ हवा, साफ पानी, पुष्टिकर भोजन, साधारण रहन-सहन और स्वच्छ विचारों का अति आवश्यकता है, आचरण और आरोग्यता में इतनी घनिष्टता है कि एक सदाचारी मनुष्य ही नीरोग हो सकता है । वह मनुष्य जो अपने किये हुए दुष्कर्मो को भूल कर सदाचारी बनने की कोशिश करता है, वह अपने प्रयास में शोघ्र ही सफलीभूत होता है। जिन्होंने थोड़े दिनों के लिये भी ब्रह्मचर्य धारण किया है उन्हें अनुभव हुआ है कि थोड़े समय में ही उनके शारीरिक एवं मानसिक बल का कितना विकास हुआ है। जिन्हें इस प्रकार के अनुभव हो गये हैं वे किसी भी हालत में अपने संचित वीय-कोष को घटाना नहीं चाहेंगे। मैं ब्रह्मचर्य के महत्व को जानते हुए भी स्वयं उसके नियमों का उलंघन करके उसके दुष्परिणाम को भी भोग चुका हूँ। जब मैं अपनी उस अवस्था की याद करता हूँ। तो लज्जा से मेरा सिर झुक जाता है। लेकिनी