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________________ चर्य तोड़ते हैं वे कामी नहीं कहलाते और न उनका स्वास्थ्य हो बिगड़ सकता है। लेकिन अफसोस है कि हम लोगों में से बहुत कम सन्तानोत्पत्ति के लिए ऐसा करते हैं। हजारों विषय-वासना की तृप्ति के लिए ही ऐसा करते हैं। फल यह होता है कि उनकी सन्तान उनकी इच्छा के विरुद्ध होती है। काम के वेग में हम लोग प्रायः उसके फल को नहीं सोचते। इस विषय में स्त्री की अपेक्षा पुरुष ही अधिक दोषी होते हैं। वे इतना कामान्ध हो जाते हैं कि वे इतना भी नहीं सोच सकते कि स्त्री सन्तान देने योग्य है या नहीं। पाश्चात्य देशवालों ने तो इसकी हद ही कर दी है। वे भोग-विलास करते हैं। और सन्तान की उत्पत्तिसे बचने के लिए अनेक उपचार करते हैं। हजारों पुस्तकें इस विषय पर लिखी गई हैं। हजारों इसका व्यवसाय करने हैं और घाषणा करते हैं कि अमुक काम करने से भोग विलास करने पर भी सन्तान उत्पत्ति का भय नहीं। हम लोग अभी इस पाप से बचे हैं लेकिन स्त्री को सन्तान के बोझ से बोझित करते हम जरा भी नहीं हेचकते। हम लोग यह नहीं सोचते कि हमारी सन्तान कमजोर, वोयहीन, पागल और निर्बुद्धि होगी बल्कि ऐसी सन्तानों के लिये इम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और खुशी मनाते हैं। क्या इससे भी भयावह वस्तु हो सकती है ? इस विषय में हम लोग जानवरों से भी गये बीते हैं। क्योंकि जानवर तो बच्चा पैदा करने के समय ही सम्भोग करते हैं। जब तक बच्चा दूध पीता रहे माँ-बाप को इस हरकत से बचना चाहिए। लेकिन हम लोग इसके ऊपर ध्यान नहीं देते। यह रोग हम में बढ़ता ही जा रहा है यदि इमारी यह हालत रही तो यह शीघ्र ही हमें कब्र के नजदीक हुँचा देगा। विवाहित मनष्य को विवाह का महत्व समझना वाहिए और सन्तान उत्पत्ति के लिये ही सम्भोग करना चाहिए। ज्ञणिक आनन्द के लिये कभी भी सम्भोग नहीं करना चाहिये।
SR No.100004
Book TitleSwasthya Sadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherGandhi Granthagar Banaras
Publication Year1951
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size16 MB
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