________________
आलसी एवं सुस्त होते गये उन्हें कपड़े की आवश्यकता प्रतीत होती गई। जब वे ठण्ड बरदाश्त नहीं कर सके तब पोशाक की प्रथा चल पड़ । अन्त में लोगों ने पोशाक को आभूषण का स्थान दे दिया । अब तो पोशाक जाति, देश भेद बताने के लिए आपश्यक हो गयी है ।
सचमुच प्रकृति की तरफ से मनुष्य को चमड़े की एक अच्छी पोशाक मिली है । यह केवल हम लोगों का भ्रम है कि शरीर नङ्गा रहने से बुरा मालूम होता है क्योंकि अच्छा से अच्छा चित्र तो नंगी दशा में ही दिखलाया जाता है। पोशाक से हम अपने अंगों को ढक कर उनका दोष छिपाते हैं और इस तरह प्रकृति के कामों में बाधा पहुँचाते हैं। भेष बनाने में भी हम पैसों को बरबाद करते हैं । सब प्रकार से मनुष्य अपना सौन्दर्य बढ़ाना चाहता है । शीशे में मुँह देखकर अपनी सुन्दरता पर इतराता है । अगर ऐसे स्वभाव से हम लोगों की नजरों में कुछ अन्तर न पड़े तो हम सोच सकते हैं कि मनुष्य का सब से सुन्दर रूप नग्न अवस्था हो में दिखलाई देता है और उसी से वह स्वस्थ भी रह • सकता है शायद कपड़ों से सन्तुष्ट न होकर हम लोग गहना पहनना कर्त्तव्य समझने लगे हैं ।
अधिकांश मनुष्य पैरों में कड़ा, कानों में बालों और हाथ में अंगूठी पहनते हैं । इनसे बीमारियाँ उत्पन्न होती है । यह जानना मुश्किल है कि इनके पहनने से कौनसी शोभा बढ़ती है । इस विषय में स्त्रियों ने तो और भी कमाल कर डाली है । वे पैरों में बजनी कड़े और पायजेब पहनतीं, जिससे पैर उठना भी कठिन हो जाता है। नाक में वजनी नथ लटकी रहती है और कानों में बालियाँ गुथी रहती हैं। हाथों के गहने का तो कुछ पूछना ही नहीं है । इस पहिरावे से उनके शरीर पर मैल जमी रहती है। कान और नाक में तो खूब ही मैल जम जाती है वे