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________________ लोग अपने मित्रों को केवल जल पीने के लिए या साथ में मिल-कर दाँत साफ करने के लिए तो कभी निमन्त्रित नहीं करते । क्या भोजन करने का नियम स्वास्थ्य के लिये आवश्यक नहीं है ? हम लोग इतना पेटू हो गये हैं कि हमारी जिह्वा सदा स्वादिष्ट भोजन चाहती है, इसीलिए हम लोग अपने मिहमानों को स्वादिष्ट भोजन कराते हैं कि जब हम भी उनके यहाँ जायेंगे तो वे भी हमें वैसा ही भोजन करायेंगे। भोजन के एक घन्टे बाद यदि हम स्वच्छ शरीर वाले मित्र से अपने मुँह को सूँघने के लिए कहें और उसके वास्तत्रिक विचार जानें, तो हमें अपना मुँह लज्जा से छिपाना पड़ेगा। लेकिन कुछ मनुष्य ऐसे निर्लज्ज होते हैं कि खाने के बाद शीघ्र ही कोई चूर्णं खा लेते हैं ताकि वे फिर खा सकें । कभी-कभी तो वे जो कुछ खाये रहते हैं उसको उल्टी भी कर देते हैं, और फिर भी भोजन के लिए बैठ जाते हैं । चूँकि हम लोग अधिक भोजन करने के थोड़े-बहुत अपराधी हैं, इसलिए हमारे लिए धार्मिक दृष्टि से कभी- कभी व्रत रखने के नियम बनाये हैं । सचमुच स्वास्थ्य के विचार से एक पक्ष में एक दिन उपवास करना जरूरी है। बहुत से धार्मिक हिन्दू वर्षाकाल में एक ही वक्त खाते हैं । यह स्वास्थ्य के नियम का ही पालन है, क्योंकि जब वायु में अधिक भाप होता है और आसमान में बादल घिरे होते हैं तब हम लोगों की पाचन शक्ति भी कुछ कम हो जाती है । अत: भोजन की मात्रा उन दिनों में कुछ कम करनी चाहिए | कितनी बार खाना बार खाकर रहते हमें यह विचार करना है कि दिन में चाहिए | हिन्दुस्तान के अधिकांश मनुष्य दो हैं। जो कठिन परिश्रम करते हैं वे तीन बार खाते हैं, लेकिन अंग्रेजी औषधि द्वारा चार बार खाने का अविष्कार हुआ है । अब इंग्लैण्ड और अमेरिका में ऐसे समाज बने हैं जो केवल दो
SR No.100004
Book TitleSwasthya Sadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherGandhi Granthagar Banaras
Publication Year1951
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size16 MB
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