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हैं। अब हम यह विचार करेंगे कि गेहूँ के बनाने का सबसे अच्छा तरीका कौनसा है । कल का आटा जो बाजारों में बिकता है, बिल्कुल खराब होता है, और उसमें पोषक पदार्थ बिल्कुल नहीं रहता । एक अंग्रेज डा० का कहना है कि एक कुत्ता जिसे केवल कल के आटे की रोटी खिलाई जाती थी, कमजोर होकर मर गया, और दूसरा कुत्ता जिसे दूसरा आटा खिलाया जाता था, स्वस्थ बना रहा। फिर भी स्वाद की दृष्टि से इसका माँग अधिक है। इसकी रोटियाँ कड़ी और स्वादहीन होती हैं। कभी कभी वे इतनी कड़ी हो जाती हैं कि हाथ से तोड़ना भी कठिन हो जाता है। सबसे अच्छा आटा वह है जो गेहूँ को कट-छाँट कर चक्की में स्वयं पीसकर तैयार किया जाता है । इसका प्रयोग बिना छाने करना चाहिए । इसकी बनी रोटियाँ स्वादिष्ट और मुलायम होती हैं। पोषक होने के कारण यह देर तक ठहरती है। वाजार की रोटियाँ यद्यपि देखने में भली और आकर्षक मालूम होती हैं, लेकिन वे बिल्कुल व्यर्थं और हानिकारक होती हैं। उनमें चर्बी चुपड़ी होने के कारण हिन्दू-मुसलमान दोनों के लिये समान आपत्तिजनक होती हैं गेहूँ बनाने का दूसरा तरीका यह है कि गेहूँ को दल लिया जाय, और उसमें दूध और खाँड मिलाकर पका लिया जाय । यह बहुत स्वादिष्ट तथा बल-वर्द्धक होता है। ___ चावल दाल, घी और दूध की तरह पुष्टकर नहीं होता। तरकारियाँ केवल स्वाद के लिए खाई जाती हैं, इनमें एक तत्व होता है जो खून को कुछ अंश में साफ करता है। लेकिन घास होने के कारण यह देर से पचता है : जो इनका अधिक व्यवहार करते हैं, उन्हें प्रायः अपच हो जाती है। इसलिये हमें तरकारी उचित परिमाण में खाना चाहिए। ___ हरएक दाल पचने में भारी होती है । दाल में सिर्फ यही गुण है कि जो इसे अधिक खाता है, उसे देर तक भूख नहीं लगती;