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हमें मानना पड़ेगा कि हवा के बिना जीवित रहना असम्भव है। हम जानते हैं कि रक्त का संचार सारे शरीर में होता है, फिर फेफड़ों में आता है और शुद्ध होने के बाद पुनः चक्कर लगाता है। साँस द्वारा हम अशुद्ध हवा बाहर निकालते हैं और बाहर से आक्सिजन भीतर लेते हैं जिससे रक्त शुद्ध होता है। यह क्रिया बराबर जारी रहती है। इसी के ऊपर मनुष्य का जीवन निर्भर है। पानी में डूबने से हम इसलिए मर जाते हैं कि न तो हम दूषित हवा को बाहर निकाल सकते हैं और न ताजी हवा पा सकते हैं।
गोता लगाने वाले जब पानी में पैठते हैं तो उन्हें टयूब द्वारा बाहर से ताजी हवा मिलती है। इसी कारण वे पानी में देर तक ठहरते हैं। यह अनुभव से सिद्ध हो चुका है कि हवा के बिना मनुष्य पाँच मिनट से अधिक जिन्दा नहीं रह सकता है। बच्चों को मृत्यु हमें अधिक सुनाई पड़ती है। इसका मुख्य कारण उनकी. अनभिज्ञ मातायें हैं जो उन्हें ताजी हवा में नहीं रखती हैं। ' ___ हम लोग अशुद्ध हवा के उसी प्रकार विरुद्ध हैं जिस प्रकार गन्दे पानी और भोजन के; लेकिन पानी और भोजन की अपेक्षा अशुद्ध हवा के अधिक विरुद्ध हैं। चाहे हम प्यास से मर हो क्यों न जायँ, लेकिन दूसरे की कुल्ली किये हुए पानी को कभी भी काम में न लायगे। लेकिन दुख की बात यह है कि हम शुद्ध हवा की ओर ध्यान नहीं देते। हम प्रत्यक्ष वस्तु की पूजा करते हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष एवं लाभदायक वस्तुओं पर ध्यान ही नहीं देते। बहुत से आदमी एक साथ सोते हैं लेकिन जो विषैली हवा उस कमरे में गुंजी रहती है उसका हम तनिक भी ध्यान नहीं रखते। दूसरे श्रादमी का जूठा पानी और जूठा भोजन पीने-खाने के पूर्व हमें अच्छी तरह सोचना चाहिए । यहाँ तक कि वे मनुष्य भी जो भूख और प्यास से मरते हों, ऐसा करने के लिए कभी भी तैयार