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नहीं मिलता कि वे रोगी के शरीर में अपने विष की थैली को हेल दें। इसलिए यदि हमें जहरीला साँप भी काट ले तो हमें रना नहीं चाहिए, क्योंकि उसकी औषधि बहुत ही लाभप्रद और सुलभ है, जिसका प्रयोग हम बिना किसी की सहायता के यं कर सकते हैं।
जिस स्थान में साँपने काटा हो उससे थोड़े ऊपर खूब खींच र बाँध देना चाहिए और एक लकड़ी या मजबूत पेन्सिल से त दे देना चाहिए । ऐसा करने से विष शरीर में फैलने नहीं पाता व एक पतले बारीक चाकू से उस स्थान को आध इंच गहरा ट देना चाहिए ताकि विषैला खन बाहर निकल आवे। इसके द काटे हुए स्थान में लाल या काला पाउडर जो बाजारों में कता है और जिसे परमेगनेट ऑफ पोटास कहते हैं उसी को र देना चाहिये । यदि यह नहीं मिले तो खन को स्वयं या किसी -सहायता से मुंह से चूस कर निकाल देना चाहिए। जिसके ठ या जीभ पर घाव हाँ उसे नहीं चूसना चाहिए। यह उपचार टने पर सात मिनट के अन्दर अन्दर करना चाहिए जिससे इर बदन में न फैलने पावे। जैसे कि पहले हो बताया गया कि एक जर्मन डाक्टर का जो इस रोग के लिए सिद्धहस्त माग ता है कहना है कि रोगी को ताजी मिट्टी से ढक देना चाहिए । पि मिट्टी के पुलटिस का प्रयोग मैंने इस विषय में नहीं किया फिर भी उसमें मेरा पूर्ण विश्वास है, क्योंकि इसके लाभ को मैं न्य रोगों में भी अनुभव कर चुका हूँ। पोटास लगाने वा खून लने के बाद मिट्टी की पुलिटिस, जो आधी इञ्च मोटी हो, बाँध Bा चाहिये। हर एक घर में अच्छी पिसी और सुखाई हुई ही एक टीन में प्रयोग के लिए तैयार रखनी चाहिये । इसे इस कार रखें कि इसमें सूर्य की धूप और हवा लगती रहे और नमें होने पावे । पट्टी के लिए कपड़ा भो रखना चाहिये। ताकि