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भारत की खोज
कितनी भी हो सकती है, उम्र कितनी भी की जा सकती है उम्र को बदला जा सक ता है, उम्र को लंबा किया जा सकता है, उम्र को छोटा किया जा सकता है। हीरोसीमा पर एटम बम गिरा एक लाख बीस हजार आदमी मर गए उन सब के हा थ की रेखाएं समान नहीं थी । उन एक लाख बीस हजार लोगों के हाथ उठाकर देख ले उन के हाथ की रेखाएं उसी दिन समाप्त नहीं होती थी, सभी की समाप्त नहीं होती थी। शायद ही कीसी एक आद आदमी की उम्र की रेखा उस दिन वहां समाप्त
हो रही हो वह संयोग की बात होगी। एक लाख बीस हजार आदमी मर जाते हैं ए क घडी भर में, एक बम उनके जीवन को समाप्त कर देता है । लेकिन हम इस दे श में उम्र की समस्या को लेकर बैठे हैं और हमने मान रखा है की उम्र तो तय है जनसंख्या बढ़ती चली जाती है हम कहते वह तो भगवान देता है बच्चे हम से ज्याद ा बेईमान प्रतिभा खोजनी मुशकिल है बहुत कनिंगमाइंड है हमारा। जो भी हम नहीं बदलना चाहते हैं उस को हम भगवान पर, भाग्य पर, संसार के ऊंचे-ऊंचे सिद्धांतों पर थोप देते हैं जापान अपनी संख्या सीमित कर लेगा, फ्रांस ने अपनी संख्या सीमित कर ली। फ्रांस पर मालूम होता है भगवान का कोई बस नहीं चलता। वह तय कर ते हैं की कितने बच्चे पैदा करने हैं। हम पर ही भगवान का बस चलता है या तो ऐसा मालूम पड़ता है की भगवान का बस सिर्फ कमजोर और न समझों पर चलता है और ऐसे भगवान की कोई जरूरत नहीं है जो कमजोरों पर बस चलाता हो लेकि न सच्चाई उल्टी है भगवान का इससे कोई संबंध नहीं हैं।
जिस भगवान की हम बातें कर रहे हैं वह भी हमारे भीतर बैठा हुआ है काम कर रहा है हमारे हाथों से वही कर रहा है, वह हमसे अलग होकर नहीं कर रहा है अ गर हम उम्र बड़ी कर लेंगे, अगर हम गरीबी मिटा देंगे, अगर हम बच्चे कम पैदा करेंगे तो यह भी भगवान ही कर रहा है हमारे द्वारा। वह जो भी करता है हमारे द्व ारा करता है हमारे द्वारा के अतिरिक्त उसके पास और कोई उपाए भी नहीं क्योंकि
हम वहीं हैं हम उसके ही हिस्से हैं हम जो भी कर रहे हैं वही कर रहा है।
रूस में भी वही कर रहा है और फ्रांस में भी वही कर रहा है और भारत में भी व ही कर रहा हैं लेकिन हमने यहां एक भेद कर रखा है हमने जिंदगी जैसी है उसका जो स्टेटसको है जैसी हो गई है स्थिर और उसको वैसा ही बनाए रखने के लिए भग वान का सहारा खोज रखा है और हम कहते हैं की उम्र भगवान की, बीमारी भगवा न की, अंधा आदमी पैदा हो, काना आदमी पैदा हो तो सब भाग्य का भगवान का जम्मा यह कोई भी जिम्मा भाग्य और भगवान नहीं ।
यह सारी बातें होती रही है क्योंकि आदमी अज्ञान में है और आदमी का ज्ञान बड़े तो किसी आदमी के अंधे पैदा होने की कोई भी जरूरत नहीं, किसी आदमी के लग. डे-लूले पैदा होने की कोई भी जरूरत नहीं है। किसी आदमी के बेवक्त मर जाने की कोई भी जरूरत नहीं है ।
वैज्ञानिक तो कहते हैं की आदमी के शरीर को देखकर ऐसा लगता है की इस शरीर को कितने ही लंबे समय तक जिंदा रखा जा सकता है। इस शरीर के भीतर मर
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