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________________ भारत की खोज ज्ञान की जो अग्नि है उसमें बुरा जल जाता है और जो शुभ है वह शेष रह जाता है । लेकिन जाने ही ना तो अज्ञान में शुभतलाहिता अशुभ बढ़ता चला जाता है। जैसे कसी के घर में अंधेरा हो दरवाजे बंद हों कोई भीतर मालिक जाता ही ना हो, तो वहां कूड़ाकरकट इकट्ठा होता, कीड़े मकोड़े इकट्ठे होते हैं सांप बिच्छू इकट्ठे होते हैं, अंधेरे में गंदगी इकट्ठी होती है, दुर्गंध फैलती है। फिर मालिक उस मकान के भीतर जाए सिर्फ जाए। और उसके जाने से ही फर्क शुरू हो जाएगा। क्योंकि जैसे ही वह दे खेगा कि मेरे घर में कीड़े-मकोड़े इकट्ठे हैं, इन कीड़े-मकोड़ों के साथ कैसे रहा जा स कता है। कीड़े-मकोड़ों को हटाना पड़ेगा । वह हटा देगा। लेकिन मालिक बैठा है घर में ताला लगाकर, बाहर पीठ टेके हुए बस । और घर के भीतर ही नहीं जाता, और भीतर यह सब बढ़ता चला जा रहा है। और घर के सामने उसने बड़ी-बड़ी तख्तियां लगा रखी हैं। यहां कोई कीड़े-मकोड़े न हीं हैं, यहां कोई अंधेरा नहीं है, यहां सब अच्छा है आईए स्वागत है आपका। और वहीं सीढ़ियों पर सब स्वागत चल रहा है । और घर के भीतर ना वह खुद जाता है ना किसी और को ले जा सकता है। जहां खुद ही नहीं गया वहां दूसरे को कैसे ले जाएगा। हम जिसे प्रेम करते हैं उसको भी अपने भीतर का हिस्सा नहीं देखने देते। उसे भी हम धोखा ही देते चले जाते हैं । इसलिए कोई प्रेम भी नहीं हो पाता। हम खुद ही डरते हैं अपने को देखने से तो हम दूसरे को कैसे देखने दें। आत्म साक्षातकार का मतलब यह नहीं है कि बैठकर एक आदमी चिल्लाए कि मैं ब्रह्म हूं, मैं ब्रह्म हूं, मैं ब्रह्म हूं। यह मुढ़ता है आत्म साक्षात कार का उपाय नहीं। आत्म साक्षातकार का अर्थ है कि मैं जानूं कि मैं कैसा हूं। मैं जैसा हूं वैसा जानूं, उसे पहचानूं। उसे पूरी सच्चाई में पहचान लूं कि मैं ऐसा आदमी हूं। यह मेरे भीतर है। और आप कहेंगे कि जब दिखाई पड़ जाएं तो फिर हम क्या करें? मैं कहता हूं कि पहले देख लें जल्दी मत करें कि हम क्या करें। पहले देख ले ना जरूरी है। और देखने से ही जो करना है वह दिखाई पड़ना शुरू हो जाएगा कि हम क्या करें ? रास्ते पर आप जा रहे हैं और एक सांप आ गया है रास्ते पर। फिर आप किसी से पूछते हैं कि अब मैं क्या करूं? फिर आप पूछते हैं कि जाऊं किसी गुरु के पास पता लगाऊं कि सांप रास्ते पर आ जाए तो क्या करना चाहिए ? सांप रास्ते पर दिखा फर ना गुरु की फिक्र ना किसी से पूछने की आदमी छलांग लगाता है। घर में आग लग जाए फिर आप गीता खोल कर देखते हैं कि घर में आग लगी है तो क्या करन चाहिए। गीता-वीता वहीं घर में पड़ी रह जाती है, आदमी छलांग लगाकर बाहर हो जाता है। जब जिंदगी की असलीयत दिखाई पड़नी शुरू होती है वहां सांप और आग दिखाई प. डनी शुरू होती है। वहां जहर दिखता है तो कोई पूछने नहीं जाता कि क्या करूं छल लांग लग जाती है। वह इतनी खतरनाक चीजें हैं कि उनके साथ एक क्षण रहा नहीं जा सकता है एक सडन चेनज । एक जैसे विस्फोट हो गया हो। इस तरह का परिवर्त Page 77 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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