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________________ भारत की खोज रीफ हुई कि वह सत्याग्रह कर रहा है। सबने कहा कि, 'सत्याग्रह तो अच्छा होता है ।' वह तो बेचारा खुद मरने के लिए कह रहा है । दूसरे का हृदय परिवर्तन करने क कोशिश कर रहा है। यह हृदय परिवर्तन की कोशिश है। घर के लोग घबरा गए। अगर वह लड़का छुरे से धमकी देता तो पुलिस में इंतजाम कर देते। लेकिन वह कह रहा है कि मैं अनशन करके मर जाऊंगा, मैं सत्याग्रह कर रहा हूं। मैं हृदय परिव र्तन की कोशिश कर रहा हूं। मैं अपनी आत्मशुद्धि कर रहा हूं और लड़की के बाप की आत्मशुद्धि कर रहा हूं। ताकि वह राजी हो जाए । और गांव भर में सत्याग्रह को समर्थन देने वाले लोग मिल गए। और जय-जयकार होने लगी। बाप धवराया कि क्या करे? लोकमत सत्याग्रह के पक्ष में है। तो बाप ने एक पुराने वृद्ध सत्याग्रही से जाकर पूछा कि, 'कुछ रास्ता बताओ।' उसने कहा कि —घबराओ मत! शाम को इंतजाम कर देंगे।' वह एक बूढ़ी वैश्या के पास गया औ " र उससे कहा कि, ‘रात को बिस्तर लेकर आ जाओ, और जब हम लड़के के सामने अनशन कर दोगी जब तक मुझसे विवाह नहीं करोगे मैं मर जाऊंगा।' उस बुढ़िया ने आकर अनशन कर दिया, वह लड़का रात में ही बिस्तर लेकर भाग गया। एक दूसरे की गर्दन इस तरह भी दबाई जा सकती है। लेकिन आप जब तक दूसरे की गर्दन दबा रहे हैं। चाहे गर्दन दबाने का ढंग अहिंसक हो, भीतर हिंसा मौजूद है। दूसरे आदमी को दबाने के पीछे हिंसा है। लेकिन दूसरे के खोजबीन में जाना बहुत मुश्किल है अपनी खोजबीन में जाना बहुत आसान है। हम देख सकते हैं कि हमारी अहिंसा हिंसा तो नहीं है। हमारा प्रेम घृणा तो नहीं है। हमारे सत्य के पीछे झूठ तो नहीं बैठा है। हमारे स्दभाव के पीछे दुर्भाव तो नहीं है। हम जैसे है भीतर भी हम वै से ही हैं, अगर नहीं हैं तो एक काम है और वह यह है कि हम जैसे हैं उसे जानने में लग जाएं चाहे कितने ही बूरे हों बूरे को जानना है। बुरे को बदलने को ही एक रास्ता है। जैसे भी हैं, कोई फिक्र नहीं कि बूरे हैं। लेकिन बूरे ही हैं तो हम उसे जा नें पहचानें। धोखा ना दें, छिपाएं ना। जिस घाव को छिपा लिया जाए वह मिटता न हीं है। अंत तक बढ़ता चला जाता है, नासूर बन जाता है। कैंसर भी बन सकता है। और हमने मन सब धाव छिपा रखे हैं। और ऊपर हम इस तरह कि कोई घा व ही नहीं, ऊपर हम बिलकुल ठीक हैं। किसी भी आदमी से पूछो वह कहेगा बिलकुल ठीक है । और कोई आदमी बिलकुल ठ ळीक नहीं, सब आदमी भीतर गड़बड़ हैं लेकिन पूछो कि क्या सच कह रहे हैं ? तो व ह कहेगा कि कहना पड़ता है इसलिए कह रहे हैं सब उपचार हैं। फार्मिलिटी से आद मी ने कहा कि सब ठीक है । सब खुश है लेकिन कोई खुश नहीं । भीतर इसकी एकएक व्यक्ति को अपनी ही निरीक्षण और खोज करनी जरूरी है। ताकि हम पहचान सकें कहां हम असली हैं कहां हम नकली हैं। और ध्यान रहे कि असली को पहचान लेना ही बहुत अदभुत काम है क्योंकि असली को पहचानते ही जो हो रहा है गरना शुरू हो जाता है और जो शुभ है वह बढ़ना शुरू हो जाता है । Page 76 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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