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________________ भारत की खोज से रख दो, इतने जोर से क्या पटकते हो कि पड़ोस के लोगों को आवाज सुनाई पड़ जाए।' अब दान अगर धीरे से करो तो मजा ही चला जाता है। तो दान तो आदम ऐसे करता है कि सारा गांव सुन ले । इतने जोर से रुपए पटकता है कि सारा गांव सुन ले। वह आदमी चौंका होगा। लेकिन रामकृष्ण ने उसके नकली पन को पकड़ लया है। फिर भी वह कहने लगा कि नहीं भूल से गिर गई । वह झूठ बोल रहा है। फिर रामकृष्ण ने कहा कि, 'मैं क्या करूंगा इन रुपयों का ? स्वर्ण मुद्राएं है हजार हैं तुम एक काम करो तुम इनकी गठरी बांध लो और जाकर गंगा में डाल आओ । नी चे ही गंगा बहती है। पास ही सीढ़ियां उतरे और वह गंगा में डाल आए। अब राम कृष्ण को दे चुका था। इस लिए मना भी नहीं कर सकता था, गया मजबूरी थी कन बहुत देर हो गई लौटा नहीं। रामकृष्ण ने एक आदमी को भेजा, जाकर देखो उ स आदमी का क्या हुआ ? उस आदमी ने लौट कर कहा कि, 'वह आदमी एक - एक रुपए को बरसाता है गिन रहा है, और एक एक रुपए को फेंक रहा है। और वहां ब. भीड़ इकट्ठी हो गई।' फिर वह आदमी लौटा। रामकृष्ण ने कहा, 'तू बड़ा पागल है, आदमी धन इकट्ठा करता है तो गिनकर इकट्ठा करना पड़ता है। लेकिन जब गंगा में फैंकने गया तो गिन कर फेंकने की क्या जरूर त थी। गिनकर तो बचाया जाता है, गिनकर फैंका नहीं जाता। तो तू ऊपर से तो फैंक रहा था, और भीतर से बचा रहा होगा। नहीं तो गिनती क्यों करता। ऊपर से ही दिखाई पड़ रहा था वह देख रहा है । और भीतर से वह बचाने में लगा था। वह लोग जो मंदिर बना रहे हैं बाहर से लगता है दान कर रहे हैं भीतर से वह स्व र्ग में रिर्जवेशन कर रहे हैं, संरक्षण कर रहे हैं, वहां इंतजाम कर रहे हैं। यहां लगत कि वह दान कर रहे हैं। वह वहां कमाई कर रहे हैं। यहां लगता है वह दे रहे हैं वह इनवेस्ट कर रहे हैं। वह वहां आगे लेना चाहते हैं। T एक आदमी घर छोड़ देता है त्यागी हो जाता है। सब छोड़ देता है लेकिन पूछो उस की आत्मा में प्रवेश करके उसने कुछ भी नहीं छोड़ा है, छोड़ा है इसलिए है मल सके और ज्यादा मिल सके और किताबें कहती है कि जो एक छोड़ेगा उसे हजा र मिलेंगी। आदमी एक छोड़ता है के हजार मिल सकें। बाहर त्यागी हैं, भीतर भोगी बैठा हुआ है। बाहर छोड़ने वाला है भीतर पकड़ने वाला बैठा हुआ है। लेकिन यह कौन पहचानेगा। एक आदमी बाहर से सफेद कपड़े पहने हुए है और अगर कपड़े खा हों तो और भी अच्छा है। और भीतर भीतर एक बिलकुल काला आदमी बैठा हुआ है। सच तो यह कि सफेद कपड़े में काला आदमी भी अपने को छिपाने की कोशिश क र रहा है। वह भीतर काला वह सफेद कपड़े पहन रहा है । और सफेद कपड़े वालों के हाथ में कोई कौम और समाज चला जाए तो बड़ा खतरा हो जाता है इस मुल्क के साथ हो ही गया है। कपड़े सफेद हैं आदमी काले हैं। लेकिन हम तो जान ही स कते हैं कि मैं भीतर कैसा आदमी हूं। मैं वाहर जैसा हूं वहीं मैं स्त्रों से दिखाई पड़ता है वही मेरी आत्मा है। लेकिन नहीं जब भीतर हूं। जो मेरे व यह कहता हूं तो Page 70 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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