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भारत की खोज
गरु ने जाकर मकान का दरवाजा खटखटाया पत्नी ने द्वार खोला और पत्नी से उसने पछा कि. 'मेरा शिष्य कहां है?' उसकी पत्नी ने कहा जानकर 'मैं समझती हं आ पका शिष्य बाजार पहुंच गया है। और एक जूते की दुकान से जूते खरीद रहा है। अ और उसका जूता खरीदने में झगड़ा हो गया, और उसने चमार की गर्दन दबा ली। उ सका पति बगल के मंदिर में बैठा यह सब सन रहा है। वह बाहर निकलकर आ गय । उसने कहा, 'सरासर झठ है यह बात। मैं मंदिर में प्रार्थना कर रहा है। अभी वा जार भी नहीं खुला है अभी दुकानें भी नहीं खुली हैं और यह मेरी पत्नी झूठ बोल र ही है।' उसकी पत्नी ने. . . . उसके गुरु ने भी कहा कि, 'हैरानी की बात है, तेरा पति मं दर में पूजा कर रहा है। उसकी पत्नी ने कहा, 'आप मेरे पति से पूछिए सच में व ह क्या कर रहा है?' और उसका पति हैरान हो गया है। सच में ही पूजा तो वह व हर से कर रहा था। लेकिन पहुंच गया था वह एक जूते की दुकान पर। जूता खरीद रहा था और दाम घटाने बढ़ाने पर झगड़ा हो गया और चमार की गर्दन पकड़ ली। लेकिन उसने पूछा, 'तुझे कैसे पता चला। उसने कहा, 'रात सोते वक्त तुमने मुझ से कहा था कि सुबह उठकर ही जूते खरीदने जाना है। जहां तक मेरा अनुभव है रा त के सोते समय जो अंतिम विचार होता है सुबह उठते समय वही पहला विचार हो ता है।' तो मैंने सोचा कि शायद तुम बैठे तो माला जप रहे हो, लेकिन तुम्हारे चेहरे से ऐसा लग रहा था कि तुम किसी से झगड़ रहे हो। तो मैंने सोचा कि कहीं जूते की दूका न पर तो नहीं पहुंच गए हो। वह नकली आदमी मंदिर में पूजा कर रहा था असली आदमी चमार की गर्दन दवा रहा था। लेकिन इसे वाहर से जानना पहचानना बहुत मुश्किल है। अनुमान लगाए जा सकते हैं लेकिन अनुमान गलत भी हो सकते हैं। ह र आदमी को स्वयं को जानना पड़ेगा, कि मैं कितना असली हूं कितना नकली हूं। य ह चौवीस घंटे का परिक्षण है जन्म से लेकर मृत्यु तक का। अंतहीन परिक्षण है आवजरवेशन हैं कि मैं क्या हूं और ध्यान रहे जितना नकली आ दमी हमारे ऊपर बढ़ता चला जा रहा है। जीवन उतना ही दु:ख होता चला जाता है | अगर जीवन दु:ख हो तो जानना कि नकली आदमी भारी हो गया है। एक ही जां च की छोटी है सिर्फ नकली जब हमारे ऊपर बहूत बोझिल हो जाता है। तो दु:ख अ और चिंता और पीड़ा और उदासी छा जाती है। और जब असली प्रकट होता है तो f जदगी में बहुत सुगंध, बहुत संगीत, वहुत आनंद भजन होता है। हमारा दुःख देखकर
कहा जा सकता है कि हम सब नकली हो गए हैं। ऊपर से आदमी दिखाता है कि अहिंसक है। और भीतर हिंसा होती है, ऊपर से आदमी दिखाता है कि मैं त्याग कर रहा हूं, और भीतर त्याग में भी लोभ होता है। रामकृष्ण के पास एक दिन एक आदमी आया। तो उसने कहा, 'मैं हजार स्वर्ण मुद्रा एं लाया हूं। हे परमहंस! इन हजार स्वर्ण मुद्राओं को रखो।' और उसने जोर से थैली खोल कर पत्थर पर, वह स्वर्ण मुद्राएं पटकी। राम कृष्ण ने कहा, 'मेरे भाई! धीरे
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