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भारत की खोज
आदमी शानदार मकान बनाता है और मकान के सामने एक हांड्डी लटका देता है न जर न लग जाए। मकान को नजर लगती है! इस आदमी को वैज्ञानिक नहीं कह सकते यह आदमी टैक्नीशियन है। इस आदमी ने विज्ञान का तंत समझ लिया लेकिन विज्ञान इसकी आत्मा नहीं बन सका। इसके पास वैज्ञानिक का सोच विचार नहीं है। इसके पास वैज्ञानिक की जिज्ञासा नहीं हैं. इसके पास आस्था तो धार्मिक की है और शिक्षण वैज्ञानिक का हैं और यह वडी खतनाक बात हैं। इसका हार्दिक हिसा भीतर को पूराने धार्मिक का है और उसके ऊपर का मस्तिष्क वैज्ञानिक का है। इसके भीतर एक इनमनीट र्पसनैल्टी है। दो हिस्सों में टूट गया है यह आदमी जहां तक इससे सलाह लोगे मकान बनाने के संबंध में यह एक वैज्ञानिक की तरह व्यवहार करेगा और जहां जिंदगी का सवाल उठेगा यह बिलकुल अवैज्ञानिक हो जाएगा। यह ताबीज बनवा सकता हैं, यह जाकर कुछ भी कर सकता है इसका कोई भरोसा नह । यह आदमी विश्वास के योग्य नहीं। भारत में विज्ञान की शिक्षा चल रही है लेकि न भारत की आत्मा में वैज्ञानिक प्रतिभा पैदा नहीं हो पा रही है। इसलिए हमारा वि ज्ञान नकल से ज्यादा नहीं हो सकता। हम पश्चिम की नकल कर सकते हैं और नकल से कभी भी विज्ञान पैदा नहीं होता, नकल से क्या हो सकता है? वह पश्चिम में कुछ बनाएंगे उसकी नकल करके हम भी बना लेंगे। लेकिन जब तक हम नकल कर पाएंगे तब तक वह हम से वहुत आगे निकल जाएंगे। अब ऐसा मालूम पड़ता है की हम सदा ही पीछे रहेगे। शायद हम कभी भी उनके सामने खड़े नहीं हो सकते, हम कितना ही दौड़ेंगे तो हम पीछे रहें गे। क्योंकि हम बुनियादी वात भूले हुए वैठे हैं हमारे पास वैज्ञानिक चिंतन नहीं हैं और वैज्ञानिक चिंतन न होने का कारण, न होने का कारण हमने जगत और जीवन कि जो रियेलिटी हैं, वह जो यथार्थ हैं जीवन का वह जो पदार्थ की सत्ता है। वह जो मैटर का पदार्थ का होना है चारों तरफ हम उसको ही इंकार करके बैठे हुए हैं।
तो उसकी खोज कौन करे? उसको जानने कौन जाए? उसके रहस्यों का कौन अवि ष्कार करे? कौन उसके कानून खोजे? कौन उसके नियम खोजे? और जो समाज वै ज्ञानिक नहीं, वह समाज धीरे-धीरे शक्तिहीन हो जाता है, शक्ति विज्ञान से पैदा हो ती है। विज्ञान से शक्ति पैदा होती है चाहे किसी तरह की शक्ति हो, धन विज्ञान से पैदा होता है, चाहे किसी तरह का धन हो। जीवन का, स्वास्थ का, समृद्धि का, सारा शोध विज्ञान से आता है। हमने पांच या छः सालों में किस तरह का विज्ञान पैदा किया है। किसी तरह का विज्ञान पैदा नहीं किया जो भी हमने सीखा हैं वह सब उधार है। शायद बैलगाड़ी के बाद हमने कोई अविष्कार नहीं किया और पता नहीं वैलगाड़ी भी हमने अविष्कार की या वह हमने कभी सीखी होगी, उसका भी कोई भरोसा नहीं। और अभी भी हमारे सोचने का जो ढंग है वह बैल गाड़ी वाला ही है। सोचने का जो ढंग है सोचने का हमारा ढंग बैल गाड़ी से आगे विकसित नहीं हुआ। हम वही सोच रहे हैं बल्कि हमारे बीच तो कई
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