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________________ भारत की खोज रुपों के हैं गुरु संन्यासी साधु पुरुषों के हैं। वह सब वही समझा रहे हैं स्त्रियां उनको सुन रही हैं और वही सीख रही हैं । यह माईंड का स्ट्रैक्चर तोड़ना पड़ेगा। और यह कहना पड़ेगा, कि कोई किसी पर नि र्भर नहीं है। हम एक दूसरे पर निर्भर हो सकते हैं लेकिन कोई किसी पर निर्भर नह ीं है। इनटरडिपेंडेंस हो सकती हैं लेकिन डिपेंडेंट नहीं हो सकती । मियुचुअल डिपेंडेंट है। हम कभी किसी पर निर्भर नहीं हैं, हम मित्र हैं हम शेयर करना चाहते हैं तो ह म एक दूसरे पर निर्भर हुए लेकिन कोई मालिक कोई गुलाम ऐसा नहीं है । एक बात, दूसरी एक बात थी जो टैक्नोलोजी में वह भी खत्म कर दी वह थी स्त्री के साथ बच्चों का प्रश्न । जैसे ही स्त्री को बच्चे पैदा होते हैं वह निर्भर हो जाती है क्योंकि उतने वक्त वह कमा नहीं सकती काम नहीं कर सकती। कमजोर हो जाती है। चार छः महीने बच्चे को पालने में भी उसको घर बैठना चाहिए। तो वह निर्भर हो जाती है। हां, टैक्नोलोजी ने भी वह स्थिति भी साफ कर दी। टैक्नोलोजी ने वह स्थिति साफ कर दी। तो बर्थ कंट्रोल ने इतनी बड़ी ताकत दे दी स्त्री को कि जिसकी कल्पना नह ीं। और जब तक बर्थ कंट्रोल पर स्त्रियां पूरे बल से प्रयोग नहीं करती पुरुषों के मुका बले खड़ी नहीं हो सकेंगी। वर्थ कंट्रोल ने बड़ी ताकत दे दी । एक बात अब दूसरी बात जो है, बच्चे को पालने की, बच्चे को बड़ा करने की, यह पुरुष और स्त्री की समान जिम्मेदारी है यह कोई स्त्री की अकेली जिम्मेदारी नहीं है । यह अकेली जिम्मेदारी नहीं है, बच्चे को पालने बड़े करने की । वह स्त्री बहुत जल्द ळी लीगल व्यवस्था होनी चाहिए कि बच्चे का बोझ कोई स्त्री पर ही पूरा पड़ने का न हीं है। और दूसरी बात अब तो, अब तो संभावनाएं इतनी बढ़ती जाती हैं महाराज जिसकी हम कल्पना ही नहीं कर सकते। मां के पेट में ही बच्चा बड़ा हो यह भी जरूरी नह ीं रह गया है। वह तो टैस्ट ट्यूब में भी बड़ा हो सकता है। स्त्री को जो नौ महीने क परेशानी है उससे मुक्त किया जा सकता है। बिलकुल मुक्त किया जा सकता है। वह जो उसकी वजह से निर्भरता है वह मुक्त होती है। और दूसरी बात है बच्चों का सारा का सारा कंट्रोल स्टेट के हाथ में जाएगा जैसे ही समाज वैज्ञानिक होगा। बच्चों का कंट्रोल मां-बाप के पास रहना ही नहीं चाहिए । . वाचक - (अस्पष्ट ) टूटना ही चाहिए, मित्र तक ही यह संबंध रह जाना चाहिए। यह रिलेशनशिप बहुत कुरूप है। और इसके लिए इसे बहुत दुःख हैं । तो यह सारी स्थिति जो नई आ गई है इस नई स्थिति का पूरा विनियोग अगर हम करेंगे सोचकर तो स्त्री आज स्वतंत्र हो सकती है, मुकाबले पर समान हो सकती है। कोई कठिनाई नहीं रह गई, लेकिन स्त्री को बहुत सी ऐसी धारणाएं छोड़नी पड़ेंगी, जो पुरुष ने उसमें पैदा की हैं। Page 138 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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