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________________ भारत की खोज जो भारत की गंगा है उस गंगा में कभी-कभी कोई एक छोटी-सी धारा थोड़ी देर क ने चमकती है और खो जाती है। लेकिन मल गंगा की जो धारा है. जो मेनस्टीम है. भारतीय चेतना की वह अतित गामी है, वह पुरातन पंथी है, वह परंपरावादी है। उसके खिलाफ मैंने वातें कहीं इसलिए कोई इक्के-दुक्के के उदाहरण खोजकर यह म त सोचना कि मेरी बातों के विरोध में कछ सोच लिया। डवरे वताए जा सकते हैं ले किन इससे मरुस्थल. मरुस्थल ही रहता है। इससे मरुस्थल कछ उद्यान सिद्ध नहीं हो जाता। लेकिन कई बार मुझे ऐसा लगता है कि कमजोर चित्त अपने को बचाने की ना मालूम कैसी-कैसी कोशिश करता है। अव भी एक मित्र ने रास्ते में मैं आया हूं उन्होंने कहा कि, 'आपने सूबह सांड का उ दाहरण दिया, सांड तीन साल में जवान होता है। और आपने कहा एक साल में।' अव मुश्किल हो गई सांडों का मैं कोई हिसाव रखता हूं, कोई वैटरनरी का डाक्टर नहीं, सांडों से मुझे कुछ लेना-देना नहीं। जो बात कही थी वह क्या कही थी, वह ि मत्र कह रहे हैं कि सांड तीन साल में जवान होगा। कहा मैंने यह था कि, 'सांड ज ब सोचेगा तव गाय के संबंध में सोचेगा। वह उसका सोचना, वह उसके सांड के मा ईंड का सवाल है। वह तीन साल में सोचेगा तो तीन साल में सही उतना फर्क कर लेना लेकिन उससे कुछ मतलव हल नहीं होता उससे कुछ प्रयोजन नहीं।' ऐसी-ऐसी बातें लिखकर भेजते हैं कि मुझे हैरानी होती है। कि हम सोचते हैं, सुनते हैं, या क्या कर रहे हैं? जैसे हमने सोचना बंद ही कर दिया है। तो जो मूल आधा र होता है उसकी तो बात ही भूल जाती है और ना मालूम क्या-क्या उसमें से खोज ते नहीं कि यह ऐसा होगा। सांड तीन साल में जवान होगा, वह तीन साल में हो ि क तीस साल में हो और ना भी हो तो कोई चिंता नहीं है। जो मैंने कहा उससे इस का कुछ लेना-देना नहीं। मेरा प्रयोजन कुल इतना है कि हम जो हैं वही सोचते हैं, और जो हम सोचते हैं उससे पता लगता है कि हम कौन हैं। मैं यह कह रहा था सुवह कि आदमी भी पशु है, पशु में ही एक पशु हैं। उसके चिंत न का अगर हम गौर करेंगे तो हम पाएंगे, वह वही है जो पशुओं का है। वह पशुओं के ऊपर उठ सकता है लेकिन उठ नहीं गया है। और अपने को धोखा देना खतरना क है कि हम अपने को मान लें कि हम पशू नहीं हैं, हम परमात्मा हैं। यह धोखा खतरनाक है। आदमी परमात्मा हो सकता है, है नहीं। यह संभावना है सत्य नहीं है। और संभावना को सत्य मान लेना धोखा है। संभावना को सत्य बनाने का प्रयत्न ि वलकुल दूसरी बात है। और उस प्रयत्न में पहली बात यह होगी, कि हम अपने तथ य को समझें। हजारों लाखों साल हो गए जब आदमी जानवरों से दूर हो गया है। लाखों साल हो गए अंदाजन दस लाख साल हुए होंगे। दस लाख साल से आदमी वृक्षों से नीचे उतर आया है। बंदर नहीं रह गया। आज बंदर में और आदमी में कोई भी समानता नहीं है। लेकिन बहुत भीतर गौर करें तो बहुत समानताएं मिल जाएंगी। आप हैरान हों गे। दस लाख साल में भी बुनियादी आदतों में कोई अंतर नहीं पड़े हैं। अभी हम रास Page 115 of 150 http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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