SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत की खोज भी, वहां गए थे। जहां यह बैठक चल रही है, लोग गप-शप कर रहे हैं, खा-पी रहे हैं, एक दूसरे से मिल जुल रहे हैं। वहीं पास की एक बैंच पर एक युवक और एक युवती आंख बंद किए, एक दूसरे के गले में हाथ डाले, लीन बैठे हैं जैसे किसी और दुनिया में खोए हों। मेरे मित्र डाक्टर का मन कांस में नहीं रहा। भारतीय का मन वह उस बैंच पर ज जाने लगा, सीधा देख भी नहीं सकते, तिरछी आंखों से देखने लगे। और मन में होने लगा कैसी चरित्रहीनता है, यह क्या चरित्रहीनता है, एक जवान युवक और एक ज वान युवती पांच सौ लोगों के सामने गले में हाथ डाले हुए बैठे हैं। यह क्या बात है ? यह बहुत बुरा है, कोई पुलिस वाला आकर इनको रोकता क्यों नहीं है। बार-बार मन वहीं जाने लगा, मुझे कहने लगे, मेरे पड़ोस के डाक्टर ने, एक डच ने, मेरे का न में कहा कि, 'मित्र, बार-बार वहां मत देखें लोग आपको चरित्रहीन समझेंगे। ' यह उनका काम है कि वह क्या कर रहे हैं। आप क्यों परेशान हुए जाते हैं । और लस बुलाने की आड़ में, उनके चरित्रहीनता की आड़ में और कोई रस तो नहीं है । रस दूसरा है। और भीतर यह डाक्टर अपने मन में घुसें, और मैंने कहा कि, 'अप मन में जाओ। थोड़ा अपने रस को खोजो, कि रस क्या है ?' कहीं उस युवक की ज गह तुम बैठना चाहते हो। कहीं ऐसा तो नहीं है कि जो मौका तुम्हें मिलना चाहिए वह कोई दूसरा ले रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस वाले को बुलाने के पीछे ई र्ष्या है, कहीं ऐसा तो नहीं है कि इस चरित्रवान और इस चरित्र होने के खयाल में तुम उन दो युवकों को मिलते हुए देखने का भी रस लेना चाहते हो, कहीं ऐसा तो नहीं है कि उस जवान लड़की को देखने का मन बार-बार वहां से जा रहा है, लेकि न चरित्र की आढ़ में वहां देखने जा रहे हो । सीधे भी नहीं जा रहे कि उसी सुंदरी को देखना है तो सीधे देख लो। उसमें भी एक चरित्र होगा कि युवती सुंदर है और उसको हम देखना चाहते हैं । यह भी चरित्र होगा एक । लेकिन युवती को कहीं इस बहाने तो नहीं देख रहे हो, कि देखना भी चाहते हैं, कन चरित्र की आढ़. यह बहुत गलत हो रहा है यह हम नहीं होने देंगे। सारे ज गत में धीरे धीरे मनुष्य के यथार्थ को स्वीकृति मिलनी शुरू हो गई हैं। वह जैसा है हम अस्वीकार कर रहे हैं, जैसा है उसे और जैसा वह नहीं है । उसको आरोपित कर रहे हैं उसको इम्पोज कर रहे हैं। उसको ऊपर ढांपते जा रहे हैं और चरित्रवान बन ते जा रहे हैं तो चरित्र हमारा ऊपर होता है लेकिन चरित्र की बातों की आढ़ दुष् चरित्रता छिपी होती है । उस आढ के पीछे कुछ दूसरी जलन, कोई दूसरी पीढ़ा, ई दूसरी इंग्सटिंक्ट, कोई दूसरी वृत्तियां काम करती हैं। आदर्शवादी इसीलिए दूसरों को बहुत गाली देता हुआ दिखाई देता है। दिखाई पड़ता है उस गाली देने में ईर्ष्या है, बदला है। रिवेंज है। प्रतिशोध है । वह जो स्वयं नहीं क र पाया उसका क्रोध भी है लेकिन जिस व्यक्ति का जीवन रूपांतरित होता है, जिस के भीतर क्रांति घटित होती है। जहां अंधकार है वहां प्रकाश आता है। जहां पशु है, पशु धीरे-धीरे विसर्जित होता है और परमात्मा प्रकट होता है, उसके भीतर। दूसरों Page 101 of 150. http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy