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________________ भारत की खोज ऊंचा होना चाहिए तख्त साठ आए थे लेकिन कोई किसी से नीचे ऊंचे बैठने को रा जी नहीं था। तब एक ही उपाय था कि उस बड़ी मंच पर एक-एक बैठकर बोले । एक-एक बैठकर ही बोला वह साठ इकट्ठे नहीं बैठाए जा सके। इन्होंने सब छोड़ दिया है लेकिन चार इंच तख्त नीचा हो कि ऊंचा यह इनसे नहीं छूट पाया है। बड़ी अद भुत बात है। छोटे-छोटे बच्चे खड़े हो जाते हैं कुर्सीयों पर अपने बाप से कहते हैं कि 'हम आपसे बड़े हैं। देखते हैं हम आपसे ऊंचे हैं। उन बच्चों को क्षमा किया जा सकता है, बच्चे हैं। लेकिन एक संन्यासी जगतगुरु होने का जिसे भ्रम है। ऐसा आदम कहता है कि चार इंच ऊपर मेरा तख्त होना चाहिए । इसको चाइलडिस कहें? बच् चा कहें ? क्या कहें ? सब छोड़ दिया है लेकिन क्या छोड़ दिया है? सब मौजूद है नई शक्लों में मौजूद है। हमारी जो पशुता है वह मिट नहीं पाती। क्योंकि हम आदर्श ओढ़ लेते हैं पशुता दू सरे मार्गों से निकल कर प्रकट होनी शुरू हो जाती है। यह बहुत हैरानी की बात है। हिटलर जैसे लोगों ने. हिटलर बर्दाश्त नहीं कर सकता किसी आदमी को कि मेरे साथ खड़ा हो। हिटलर का कोई नाम नहीं ले सकता कि कोई कह दे हिटलर | हेल फयूरेर कहना पड़ेगा। आदर सूचक शब्द ही उपयोग करने पड़ेंगे कोई हिटलर के कं धे पर हाथ नहीं रख सकता। हिटलर का अहंकार. . . लेकिन किसी जगतगुरु के कं धे पर हाथ रख सकते हैं आप। किसी महात्मा के कंधे पर हाथ रख सकते हैं। महात् मा बड़ा मुस्कराता है जब आप उसके पैर में सिर रखते हैं लेकिन कंधे पर कभी हा थ रखकर देखा। तो महात्मा एक दम नाराज हो जाएगा, महात्मा एक दम विलीन हो जाएगा। और भीतर का हिटलर दिखाई पड़ने लगेगा। गेरूआ वस्त्र से कोई हिटल र बदल जाता है। लेकिन हिटलर फिर भी एक अर्थों में एक ईमानदार और साहसिक है। गेरूआ वस्त्र के भीतर छिपा हुआ। फयूरेर जो है वह इतना साहस नहीं है इतना स्पष्ट नहीं है। व ह ज्यादा धोखे में है। दूसरे को धोखा देना तो ठीक भी है लेकिन वह खुद के भी धो खे में है। कि मैं बदल गया हूं, मैं दूसरा आदमी हो गया हूं। मैं महात्मा हो गया हूं। भारत आत्मवंचना में तल्लीन है। और इसलिए भारत के पास जिसको चरित्र कहें व ह पैदा नहीं हो पाएगा। आज पृथ्वी पर हमसे ज्यादा चरित्रहीन समाज खोजना मुश्कि ल है। लेकिन हम कहेंगे हमसे ज्यादा चरित्रहीन हैं ! हमसे ज्यादा माला जपने वाले ल रोग कहां हैं? हमसे ज्यादा मंदिर जाने वाले लोग कहां हैं? हमसे ज्यादा राम-राम क हने वाले लोग कहां हैं? हमसे ज्यादा गीता और रामायण पढ़ने वाले लोग कहां हैं? हम तो बहुत चरित्रवान हैं लेकिन इन चीजों से चरित्र का क्या संबंध है। मेरे एक मित्र हैं दिल्ली में, एक डाक्टर हैं। एक मेडिकल कोस में भाग लेने वह लं दन गए थे। लौटकर आए तो मुझे वहां की कई घटनाएं सुनाने लगे। एक घटना मुझे खयाल आती है। हाईप पार्क में पांच सौ डाक्टरों की एक बैठक थी। खाना-पीना भी था, गप-शप भी थी, मिलना जुलना भी था । वह मित्र भी, वह दिल्ली के डाक्टर Page 100 of 150. http://www.oshoworld.com
SR No.100003
Book TitleBharat ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size1 MB
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