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भारत का भविष्य
चीन के राजनीतिज्ञों को समझने में कठिनाई नहीं हुई होगी कि ये हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई कहने वाले लोग अब हिंदी-चीनी भाई-भाई क्यों कहने लगे? वे समझ गए होंगे कि जिससे ये डरते हैं उसी को भाई-भाई कहते हैं। जिससे डरते हैं उसी को भाई-भाई कहने लगते हैं। एशिया में चीन अकेला मुल्क नहीं है। थाई भी है, बर्मा भी है, सिलोन भी है, इंडोचायना भी है, इंडोनेशिया भी है, जापान भी है, मलाया भी है, तिब्बत भी है, सब है लेकिन हमें कोई दिखाई नहीं पड़ा, हम को दिखाई पड़ा हिंदी - चीनी भाई-भाई । हम जिससे डर गए उसी को भाई-भाई कहने लगे। फिर हमने एक कांशसनेस पैदा की। फिर हमने उसको सचेत कर दिया।
मैंने उदाहरण के लिए कहा कि अगर हम पिछली भूलों को नहीं समझते हैं तो हम आगे उनकी पुनरुक्ति करते चले जाते हैं। ज्यादा भूलें नहीं करता है आदमी कुछ भूलों को निरंतर दोहराए चला जाता है। हम फिर दोहराए चले जा रहे हैं। इधर बीस वर्षों में जो भूलें हमने की हैं वे हम आगे भी दोहराए चले जा रहे हैं। इधर बीस वर्षों में हमने कोई स्पष्ट नक्शा, भारत को क्या बनाना है वह हमने तय नहीं किया। हम शब्दों पर खेल रहे हैं। जो जैसा मौका आता है वैसा नारा लगा देते हैं।
समाजवाद क्या है, हिंदुस्तान में यह समझना भी मुश्किल हो गया, यहां इतने प्रकार के समाजवाद हैं। कांग्रेसियों का भी समाजवाद है, प्रजा समाजवादियों का भी समाजवाद है, समाजवादियों का भी समाजवाद है, साम्यवादियों का भी समाजवाद है, इतने समाजवाद हैं कि समझना मुश्किल है कि भारत की शक्ल क्या बनाना चाहते हैं! हम शब्दों का उपयोग करते हैं, लेकिन कोई सुनिश्चित धारणा, कोई स्पष्ट विचार, कोई स्पष्ट योजना, मुल्क के सामने कोई भविष्य, जब तक मुल्क के सामने कोई स्पष्ट योजना और भविष्य न हो तब तक मुल्क अंधेरे में लड़खड़ाता है, भटकता है, इस दरवाजे, उस द्वार, इस दीवाल से टकराता है और एक फ्रस्ट्रेशन, एक विषाद मुल्क के प्राणों में भरता चला जाता है। धीरे-धीरे जब हमें कुछ करने जैसा नहीं लगता तो हम खाली हो जाते हैं। हिंदुस्तान का युवक बसें जला रहा है, मकान तोड़ रहा है, स्कूल की खिड़कियां तोड़ रहा है और हिंदुस्तान के नेता समझा रहे हैं कि यह नहीं करना चाहिए। इतने से नहीं होगा। हिंदुस्तान का युवक मुल्क के लिए कुछ करना चाहता है, और करने की कोई योजना नहीं है, वह क्रोध में तोड़ रहा है। सिर्फ वे कौमें तोड़-फोड़ में लगती हैं जिनके पास बनाने की कोई स्पष्ट योजना नहीं रह जाती। जिनके पास बनाने की स्पष्ट योजना होती है वे तोड़-फोड़ में नहीं लगतीं। लेकिन हमारे पास कभी भी स्पष्ट योजना नहीं रही। उसका कारण है और उस कारण पर भी अंतिम बात मैं आपसे कहना चाहता हूं वह ध्यान देना जरूरी है।
हिंदुस्तान हजारों वर्षों से पीछे देखने वाला देश रहा है, वह आगे देखता ही नहीं। जब रूस के बच्चे चांद पर बस्तियां बसाने की सोच रहे हैं तो हिंदुस्तान के बच्चे रामलीला देखते रहते हैं। देखो रामलीला! तुम देखते रहना रामलीला! हमारी बुद्धि पीछे की तरफ देखती है, अतीतोमुखी है, भविष्य की तरफ हम देखते ही नहीं, विचार ही नहीं करते। वह तो भगवान ने बड़ी गलती की है, हिंदुस्तानियों की आंखें खोपड़ी में सामने की तरफ नहीं, पीछे की तरफ लगाई जानी चाहिए थी, ताकि उनको पीछे की तरफ दिखाई पड़ता रहे। आगे देखने की जरूरत ही क्या है! अगर हिंदुस्तान कभी अपनी मोटरें बनाएगा, अभी तो हमें पश्चिम की नकल करनी पड़ती है, अपनी तो कोई मोटर क्या बनाना, अपनी तो सुई बनाना भी मुश्किल है। हिंदुस्तान कभी अगर अपनी मोटरें बनाएगा तो
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