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________________ भारत का भविष्य मतलब इतना ही हुआ कि वह बहुत पहले ही बूढ़ा हो गया। हिंदुस्तान में मृत्यु का इतना भय है जिसकी कल्पना करनी मुश्किल है। होना सबसे कम चाहिए, क्योंकि हम अकेली कौम हैं सारी दुनिया में, जिनका ऐसा मानना है कि आत्मा अमर है और मरती नहीं है। हम सारी दुनिया में यह कहते रहे हैं कि आत्मा अमर है और मरती नहीं है। यह बात सच है, आत्मा अमर है और मरती नहीं है। लेकिन कहने से यह बात सच नहीं होती । और जरूरी नहीं है कि जो लोग कहते हों वे ऐसा मानते भी हों। आदमी का मन बहुत उलटा है। असल में जो आदमी मरने से डरता है वह भी कह सकता है कि आत्मा अमर है । और अपने मन को समझाने के लिए आत्मा की अमरता के सिद्धांत का उपयोग कर सकता है। हिंदुस्तान को देख कर ऐसा लगता है कि हम मरने से तो बहुत डरते हैं और साथ ही आत्मा के अमरता की बात भी किए चले जाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि बूढ़ा आदमी मंदिर में बैठ कर आत्मा की अमरता के शास्त्र पढ़ने लगता है। आत्मा अमर है ऐसा पढ़ कर उसके मन को अच्छा लगता है कि मैं मरूंगा नहीं। लेकिन अगर यह भय के कारण ही वह पढ़ रहा है तो इस कारण कोई ज्ञान उत्पन्न नहीं हो जाएगा। और अगर इस बात का ज्ञान उत्पन्न हो जाए कि मैं अमर हूं और मरूंगा नहीं, तो हमारे इस मुल्क को गुलाम बनाना असंभव हो जाता। हम एक हजार साल गुलाम रहे हैं और हम कल भविष्य में किसी भी दिन गुलाम फिर हो सकते हैं। हमारे सारे उपाय ऐसे हैं कि हम किसी भी दिन गुलाम हो सकते हैं। लेनिन ने उन्नीस सौ बीस में एक घोषणा की थी मास्को में कम्युनिज्म मास्को से यात्रा करके पेकिंग होता हुआ कलकत्ते से गुजरता हुआ लंदन पहुंच जाएगा, पेकिंग तो पहुंच गया और कलकत्ते में भी पैरों की आवाज सुनाई पड़ने लगी। आज कलकत्ते की सड़कों पर जगह-जगह पोस्टर लगे हुए हैं कि चीन के अध्यक्ष माओ हमारे भी अध्यक्ष हैं, चीन के चेयरमैन माउत्सु तुंग भारत के भी चेयरमैन हैं। ये कलकत्ते की सड़कों पर जगह-जगह पोस्टर लगे हैं। हम गुलामी को फिर बुलाने की चेष्टा में लग गए। और इससे पहले भी हिंदुस्तान में जितनी बार गुलामी आई हमने बुलाया। एक हजार साल गुलाम रहने के बाद भी हमें कुछ अंदाज नहीं है, हम Page 8 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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