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________________ भारत का भविष्य मैंने सुना है कि चीन में एक अदभुत विचारक था लाओत्से । वह एक बार एक राज्य का कानून-मंत्री हो गया था। ज्यादा दिन नहीं चला वह मंत्रीपन, क्योंकि इतने अच्छे विचारक कितनी देर इस तरह के काम कर सकते हैं। पहले ही दिन उसकी अदालत में एक मुकदमा आया । एक आदमी ने चोरी की थी, चोरी पकड़ गई थी। उस आदमी ने चोरी स्वीकार भी कर ली थी। लाओत्से ने उस चोर को छह महीने की सजा सुनाई और साथ ही कहा कि जिस साहूकार घर चोरी हुई है उसको भी छह महीने की सजा देता हूं। साहूकार कहने लगा, आप पागल हो गए हैं! यह कभी दुनिया में हुआ है ? मेरा कसूर क्या है? यह कौन सा न्याय है ? किस किताब में लिखा है? लाओत्से ने कहा, गांव की सारी संपत्ति एक आदमी के पास इकट्ठी हो जाएगी तो चोरी नहीं होगा तो और क्या होगा! चोर पीछे चोर है तुम पहले चोर हो। तुम्हारी वजह से चोरी पैदा होती है। जब तक दुनिया में शोषण है तब तक चोरी बंद नहीं हो सकती । चाहे कितने ही जेल भरो, कितने ही मुकदमे चलाओ, चाहे कितनी ही नैतिक-शिक्षा दो। जब तक दुनिया में शोषण की महाचोरी चल रही है तब तक छोटी चोरियां उससे अपने आप पैदा होती रहेंगी वह बंद नहीं हो सकतीं। लाओत्से को मंत्री-पद छोड़ देना पड़ा, क्योंकि सम्राट ने भी कहा कि तुम पागल हो, साहूकारों को कभी सजा मिली है! चोर को सजा देनी पड़ती है ! लाओत्से ने कहा था, जब तक साहूकार को सजा नहीं मिलेगी, मैं यह घोषणा किए देता हूं, तब तक दुनिया से चोरी बंद नहीं हो सकती। लेकिन लोकतंत्र चोर को तो रोकता है, शोषक को नहीं रोकता। शोषक को रोकने की बात की जाए तो वह कहता है, लोकतंत्र पर खतरा है। हत्या हो जाएगी लोकतंत्र की । ऐसे लोकतंत्र की दो कौड़ी कीमत नहीं है जिसका कुल मतलब बहुजन का शोषण हो । हिंदुस्तान को लोकतंत्र की जरूरत पड़ेगी, एक समय आएगा हिंदुस्तान लोकतांत्रिक बने। लेकिन अभी जब तक हिंदुस्तान का बड़ा हिस्सा गरीब और शोषित है तब तक हिंदुस्तान को एक सख्त अधिनायकशाही की जरूरत है। जो हिंदुस्तान के शोषण के तंत्र को तोड़ देने का काम करे और उसके बाद ही सही लोकतंत्र स्थापित हो सकता है। अच्छी-अच्छी बातों के पीछे बुरे-बुरे इरादे छिपे होते हैं। लोकतंत्र का अच्छा नारा है लेकिन पीछे ? पीछे लोकतंत्र के नाम पर पूंजीशाही को बचाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। हमें खयाल में भी नहीं आता, अच्छे सब आड़ बन जाते हैं और हम उनमें ही जीए चले जाते हैं। अभी मैंने कुछ थोड़ी सी जो आलोचना की तो हिंदुस्तान भर के विचारक कितने गहरे विचारक हैं यह मुझे दिखाई पड़ा। बड़े से बड़े विचारक छोटी से छोटी गाली देने पर उतर आए। जो बहुत सज्जन थे उन्होंने सज्जनता की गाली दी। जो जरा उतने सज्जन नहीं थे उन्होंने सीधी-सीधी गालियां दीं। श्री देबरभाई ने कहा कि मालूम होता है रजनीश जी गांधी जी को समझे नहीं। अगर मार्क्स की आलोचना करो तो कम्युनिस्ट मित्र कहते हैं, मालूम होता है आप मार्क्स को समझे नहीं । अगर महावीर की आलोचना करो तो जैन कहते हैं, मालूम होता है आप महावीर को समझे नहीं। अगर बुद्ध की आलोचना करो तो बुद्ध के अनुयायी कहते हैं, मालूम होता है आप बुद्ध को समझे नहीं । Page 76 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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