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________________ भारत का भविष्य के नाम से वे अपने को बचाने में लगे हुए हैं। श्री मोरार जी ने कहा कि टीकाकार धीरे-धीरे समझ लेंगे कि सत्य क्या है। जैसे कि मोरार जी और उनके साथियों को सत्य पता है सिर्फ टीकाकारों को समझने की जरूरत है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि टीकाकारों की तरफ सत्य है इस बार। सत्ताधिकारियों के पास सत्य नहीं है। समझना टीकाकार को नहीं पड़ेगा, समझना सत्ताधिकारियों को पड़ेगा। और नहीं समझेंगे तो सत्ता खोजे बिना और कोई रास्ता नहीं है। सच तो यह है कि सत्य शायद ही सत्ता के साथ कभी रहा हो। सत्य अक्सर सूली पर रहा है, सिंहासनों पर तो असत्य ही बैठ जाता है। हमेशा की कथा यह है अब तक हम ऐसा समाज निर्मित नहीं कर पाए जिसमें सत्य को भी सिंहासन मिल सके। मैं दिल्ली था अभी। और वहां कुछ बात मैंने कही तो मुझे एक पत्र मिला। मुझे एक पत्र मिला कि आप जैसे आदमी को तो फौरन तत्काल जेल भेज दिया जाना चाहिए। मैंने आंख बंद करके गांधी जी को स्मरण किया और मैंने कहा, बड़ा अदभुत सत्संग है आपका। मैं तो जब आप थे, तब इतनी उम्र न थी मेरी कि आपसे सत्संग कर सकता। इसलिए एक साध मन में रह गई अब उसका कोई उपाय न था। लेकिन आपका नाम भी लिया, आपकी जरा दोस्ती जाहिर की तो जेल जाने की धमकी मिलने लगी। मरने के बाद भी तुम जेल जाने और भिजवाने वाले पुराने आदमी अब भी कायम मालूम होते हो। जो तुम्हारे साथ रहे वे जेल गए। मैंने अभी दोस्ती की थोड़ी सी, आपकी जरा बात की कि मुझे जेल जाने की बात आने लगी। सत्य सदा सूली पर है। गांधी की पूरी जिंदगी सूली पर लटके-लटके व्यतीत हुई। और उनके शिष्य सत्ताधिकारी हो गए हैं। और गांधी की आत्मा अगर कहीं भी होगी तो वे पछताते होंगे कि क्या इसी आजादी के लिए मैंने जीवन भर कोशिश की। इसी आजादी के लिए, यह आजादी जो मिली भारत को! गांधी का सपना यह था कि आजादी मिलेगी भारत को। तो किस भारत को? बिरला, डालमिया और टाटा के भारत को नहीं; गरीब भारत को, करोड़-करोड़ लोगों के भारत। गांधी भले आदमी थे। भले आदमी हमेशा एक भूल करते हैं कि वे दूसरों को भी भला समझ लेते हैं। गांधी में भी वह भूल भरपूर की। वे निर्दोष चित्त व्यक्ति थे। ऐसे इनोसेंट, ऐसे निर्दोष लोग बहुत कम होते हैं। उनको खयाल था कि समझा-बुझा कर वे हिंदुस्तान के पूंजीपति को भी राजी कर सकेंगे। लेकिन चालीस साल निरंतर कोशिश करने के बाद एक पूंजीपति को भी राजी नहीं कर सके कि वे पूंजी का विसर्जन कर दे, ट्रस्टी हो जाए, संरक्षक हो जाए। शायद उन्हें आखिर-आखिर में भूल दिखाई पड़ने लगी होगी, लेकिन भूल दिखाई पड़ने के पहले उनको उठा लिया गया। अन्यथा यह बात करीब-करीब तो निश्चित है कि गांधी अपने ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर पुनर्विचार करने को मजबूर हए होते। उन्हें यह बात दिखाई पड़ जानी कठिन न होती आजादी आने के बाद। जो वे यह सोचते रहे हैं कि हिंदुस्तान में कोई समाजवाद, कोई सर्वोदय, कोई सबका उदय, गरीब भारत का उदय हो सकेगा, और पूंजीपति राजी हो जाएगा। वह उन्हें सत्ता के हस्तांतरण के बाद दिखाई पड़ जाता कि पूंजीपति राजी नहीं होता है। बल्कि उनको यह भी दिखाई पड़ जाता कि जो पूंजीपति उनकी सेवा करते रहे थे, उनके सेवा का उन्होंने बहुत लाभ उठा लिया। उनके एक बड़े पूंजीपति सेवक, जब हिंदुस्तान आजाद हुआ तो उनकी कुल जायदाद तीस करोड़ रुपये थी और बीस साल में उनकी जायदाद तीन सौ तीस करोड़ रुपये हो गई है। Page 74 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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