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भारत का भविष्य
मैं जानता हूं कठिनाइयां बहुत हैं, लेकिन कठिनाइयां प्रोग्रेसिव हैं यह भी ध्यान में रहे, वे रोज बढ़ रही हैं । इसलिए जितने जल्दी उन पर आक्रमण हो जाए उतना आसान पड़ेगा, जितनी बीमारियां बढ़ जाएंगी उतनी ही कठिनाइयां होती चली जाएंगी। बहुत संभव है कि धीरे-धीरे बूढ़े और बेटे एक-दूसरे की भाषा ही समझना बंद कर दें। अभी भी काफी दूर तक भाषा समझाना मुश्किल हो गया है। वह कठिन होता जा रहा है। इस कठिनाई को मिटाने के लिए हम उपयोगी हो सकते हैं। लेकिन हम नहीं हो पाते। हम नहीं हो पाते वह हम इसलिए नहीं हो पाते कि हम में से ऐसे लोग बहुत कम हैं जिनको हम लिंक कह सकें, जिनको हम कह सकें कि जो न तो बूढ़े हैं और न तो बच्चे हैं।
लेकिन शिक्षक ऐसा काम कर सकता है। वह लिंक जनरेशन उसे मैं मानता हूं। शिक्षक का काम ही यही है कि वह बूढ़े के ज्ञान को बच्चों तक पहुंचा दे और बच्चों की संभावनाओं को बूढ़ों तक पहुंचा दे । शिक्षक का उपयोग ही यही है। अब तक यह नहीं था। अब तक एक काम था शिक्षक के हाथ में कि बूढ़े का जो ज्ञान है वह बच्चों को पहुंचा दे, कनवे कर दे। कहीं ऐसा न हो कि बूढ़ों का ज्ञान बूढ़ों के साथ मर जाए। इसलिए शिक्षक विकसित किया गया था कि वे बूढ़े के अनुभव को वह बच्चों तक पहुंचाने का काम कर दे। पुरानी पीढ़ी ने जो जाना है, खोजा है वह मर न जाए बच्चों तक पहुंच जाए। यह काम शिक्षक ने अब तक भलीभांति पूरा किया है। अब शिक्षक पर एक नया दायित्व भी आ रहा है । और वह यह है कि वह बच्चों की जो नई संभावनाएं हैं, पोटेंशिएलिटीज हैं उनको भी बूढ़ों तक पहुंचा दे। अब यह बिलकुल दूसरा काम है जो अब तक शिक्षक के ऊपर नहीं था। अब तक शिक्षक वन वे ट्रेफिक का काम कर रहा था। वह बूढ़े से बच्चे तक लाने का काम कर रहा
था ।
बच्चों से बूढ़ों तक ले जाने का काम शिक्षक ने अब तक नहीं किया था। अब शिक्षक वन वे ट्रैफिक नहीं रहेगा, डबल वे ट्रैफिक हो जाएगा । और शिक्षक अगर यह काम करे तो मैं नहीं मानता हूं कि दूरी ज्यादा दिन टिक सकती है। दूरी मिटाई जा सकती है। लेकिन शिक्षक यह काम नहीं करता; या तो शिक्षक नई पीढ़ी के साथ हो जाता या शिक्षक पुरानी पीढ़ी के साथ हो जाता है।
शिक्षक को किसी पीढ़ी के साथ होने की जरूरत नहीं है। शिक्षक का मतलब ही यही है कि वह किसी पीढ़ी के साथ नहीं है, वह लिंक जनरेशन है, वह बीच की जोड़ने वाली पीढ़ी है। वह सेतु है, ब्रिज है। और अगर ब्रिज कहे कि मैं इस किनारे के पक्ष में हुआ जाता हूं, तो ब्रिज नहीं रह जाएगा। और अगर ब्रिज कहे कि मैं उस किनारे पर हुआ जाता हूं, तो फिर ब्रिज नहीं रह जाएगा। ब्रिज को दोनों किनारों पर रहना पड़ेगा और दोनों किनारों से मुक्त भी रहना पड़ेगा। तभी ब्रिज दोनों किनारों के बीच आवागमन बन जाता है। इसलिए शिक्षण संस्थाएं जो उन्होंने अतीत में किया है उससे भी बड़ा काम उनके हाथ में भविष्य में है । और शिक्षक जो अब तक किया है उससे भी कीमती काम उसके हाथ में भविष्य में है। लेकिन यह तो मैं फिर कभी आऊं तो इस पर विस्तार से आपसे बात कर सकूं।
पांचवां प्रवचन भारत का भविष्य
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