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________________ भारत का भविष्य कह सकें, बिना किसी भय के । जो सच है उसे हम एक-दूसरे से बात कर सकें। तो शायद अंधे और लंगड़े के बीच संबंध जोड़ा जा सकता है। अभी भी देर नहीं हो गई। और अगर वह संबंध जुड़ जाए तो भारत की दिशा बहुत स्पष्ट है। भारत की दिशा स्पष्ट है इस अर्थों में कि हम अपने अतीत को तो कभी बदल नहीं सकते। और अतीत हमारे खून का हिस्सा हो गया होता है, हमारी हड्डी, हमारी मांस-मज्जा बन जाता हैं । अतीत वह नहीं है जो इतिहास की किताबों में लिखा है, अतीत वह है जो हमारे खून में बैठा है । इतिहास की किताबें जल जाएं तो भी अतीत मिट नहीं जाएगा, हम अपने अतीत हैं। वी और अवर ओन पास्ट । हम सारे अतीत को अपने में समाए हुए खड़े हैं। इसलिए कोई भी अतीत से बिलकुल टूटने की कोशिश करे तो स्युसाइडल है, मरेगा, बच नहीं सकता। क्योंकि हड्डी मेरी अतीत की है, मांस मेरा अतीत का है, खून मेरा अतीत का है। मैं खुद मेरे पूरे अतीत से पैदा हुआ हूं। वह जो लंबा पास्ट है, जिसमें करोड़ों लोगों का हाथ है – वृक्षों का, पशुओं का, पक्षियों का, आकाश का, उस सबका मैं अंतिम छोर हूं। उस बड़ी श्रृंखला की आखिरी कड़ी हूं। हम सब अपने अतीत हैं। काश हम नई पीढ़ी को यह समझा पाएं कि अतीत हमारे जीवन का आधार है । और काश हम पुरानी पीढ़ी को यह समझा पाएं कि हम सिर्फ अतीत नहीं हैं, हम अपने भविष्य भी हैं । अतीत वह है जो हम हो गए, भविष्य वह है जो हम होंगे, जो हम हो सकते हैं। अतीत हमारा आधार है, भविष्य हमारा शिखर है। अतीत हमारी बुनियाद है, भविष्य हमारे मंदिर का स्वर्ण शिखर है, जो कल हम चढ़ाएं। अतीत हम हो गए हैं, भविष्य हमें होना है। और कोई शिखर मंदिर का बुनियाद के बिना नहीं होता । और कोई फूल जड़ के बिना नहीं खिलता। जड़ अतीत है, फूल भविष्य है। काश हम भारत की नई पीढ़ी को समझा पाएं कि अतीत तुम्हारा खून, तुम्हारी हड्डी है, उससे तुम टूट नहीं सकते। तुम बुद्ध की प्रतिमा तोड़ो, तुम विद्यासागर की प्रतिमा गिराओ, तुम मंदिर जला दो, तुम मस्जिदों में आग लगा दो, तुम गुरुद्वारों की तरफ पीठ कर लो, तुम गीता, कुरान बाइबिल भूल जाओ, सब हो जाए लेकिन फिर भी अतीत से तुम टूट नहीं सकते, क्योंकि तुम्हारा होना ही, तुम्हारे होने में ही, दि व्हेरी बीइंग, उसमें ही तुम्हारा अतीत समाविष्ट है। उसमें बुद्ध मौजूद हैं, उसमें महावीर, रामकृष्ण, नानक, सब उसमें मौजूद हैं। सब किताबें मिट जाएं, सब अतीत खो जाए, तो भी हमारे खून के हिस्से हैं। अतीत से हम मुक्त नहीं हो सकते हैं, वह है । मैं अब कुछ भी उपाय करूं अपने पिता से कैसे मुक्त हो सकता हूं। पिता का दुश्मन हो जाऊं, मैं उनकी हत्या कर दूं, तो भी मैं पिता से मुक्त नहीं हो सकते हैं। माना कि मां का मैं हिस्सा हूं, लेकिन मां तक ही सीमित नहीं रह सकता, अन्यथा मेरा कोई जीवन नहीं होगा । अतीत हमारा है लेकिन हम अतीत को भी ट्रांसेंड करते हैं, पार जाते हैं। वही हमारा भविष्य है। काश हम बूढ़ी पीढ़ी को समझा सकें कि भविष्य की तरफ फैलती हुई शाखाओं को अतीत में बांधो मत। मुक्त करो। अतीत की जड़ें फूलों के लिए रस दें, फूलों को बांधने वाली कड़ियां और जंजीरें न बन जाएं। तो भारत की दिशा बहुत साफ है। भारत को अपने पूरे अतीत को पचा कर अपने पूरे भविष्य को खोजना है। यह भविष्य अतीत जैसा नहीं होगा। नहीं हो सकता। यह भविष्य पश्चिम जैसा भी नहीं हो सकता। क्योंकि पश्चिम जैसा हमारा अतीत नहीं है। इसलिए ये फूल पश्चिम में जो खिले हैं, हमारी जिंदगी में ठीक वैसे नहीं खिल सकते जैसे वहां खिले हैं। और अगर हमने Page 64 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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