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भारत का भविष्य
और जिन चीजों के लिए सर्टिफिकेट होते हैं, परीक्षाएं होती हैं, वे केवल इनफार्मेशन के संबंध में सही हैं, जीवन के संबंध में सही नहीं हैं। और ऐसा हो सकता है कि एक आदमी प्रेम के संबंध में सारी बातें जान ले और फिर भी प्रेम उसने न जाना हो। और ऐसा भी हो सकता है कि जिस आदमी ने प्रेम जाना हो उसे प्रेम के संबंध में कही गई बातों का कुछ भी पता न हो। ऐसा हो सकता है कि एक आदमी तैरने के संबंध में लिखे गए सारे शास्त्र पढ़ ले, परीक्षाएं पास कर ले, और यह भी हो सकता है कि वह तैरने के संबंध में एक पीएच.डी. की थीसिस भी लिखे और डाक्टर हो जाए, लेकिन इस आदमी को नदी में भूल से भी धक्का मत दे देना, क्योंकि वह आदमी तैर नहीं पाएगा। उसे तैरने के संबंध में पता है, तैरने का पता नहीं है। एंड ट नो समथिंग, एंड ट नो अबाउट समथिंग। इनमें जमीन-आसमान का फर्क है। कोई चीज जाननी और किसी चीज के संबंध में जानना, बहुत बुनियादी फर्क की बातें हैं। जब हम जीवन को जानते हैं तो ज्ञान पैदा होता है और जब हम जीवन के संबंध में जानते हैं तो सिर्फ सूचना इनफार्मेशन पैदा होती है। नई पीढ़ियों के पास सूचनाएं ज्यादा हैं, अनुभव बिलकुल नहीं हैं। वृद्धों के पास, पुरानी पीढ़ी के पास,
ओल्डर जनरेशन के पास अनुभव है, सूचनाओं में वे बिलकुल पिछड़ गए हैं। बूढ़े आदमी के अनुभव के उपयोग की जरूरत है, नये आदमी की सूचनाओं के उपयोग की जरूरत है। यह करीब-करीब स्थिति वैसी है जैसा कि एक पंचतंत्र की एक छोटी सी कहानी जरूर ही सुनी होगी कि एक जंगल में आग लग गई है। और एक लंगड़ा और एक अंधा आदमी उस जंगल से बचने की कोशिश कर रहे हैं। स्वभावतः जब आग लगी हो तो आदमी अपने बचाने की कोशिश में लगता है। अंधा भाग रहा है। लेकिन अंधा अगर आग में भागेगा तो बचने की उम्मीद कम मरने की उम्मीद ज्यादा है। बेहतर है कि अंधा जहां है वहीं बैठा रहे तो शायद बच भी जाए। लेकिन लगी हुई आग के जंगल में अंधे के भागने की कोशिश बड़ी खतरनाक है। अंधा भाग कर बचेगा कैसे? क्योंकि जिसे दिखाई नहीं पड़ता वह लगे हुए आग से भरे हुए जंगल में बचने के उपाय में सिर्फ मर सकता है। लेकिन अंधा भी भाग रहा है। लंगड़े को दिखाई पड़ रहा है लेकिन भाग नहीं सकता। कहानी है पंचतंत्र की। बड़े बुद्धिमान रहे होंगे वे अंधे और लंगड़े। उन दोनों ने साथ कर लिया और सहयोग किया। उन्होंने एक कोआपरेशन किया। और उन्होंने यह तय किया कि अंधा आदमी चले और लंगड़ा आदमी अंधे के कंधों पर बैठ जाए। लंगड़ा आदमी देखे और अंधा आदमी चले, और वे दोनों आदमी एक आदमी की तरह व्यवहार करें, दो आदमियों की तरह नहीं। वे एक-दूसरे के लिए कांप्लीमेंट्री हो जाएं, वे एक दूसरे के लिए परिपूरक हो जाएं। वे अंधे और लंगड़े जंगल के बाहर आ गए थे। आश्चर्य नहीं कि बाहर आ गए। क्योंकि बाहर आने का जो सुगमतम उपाय हो सकता था उसका उन्होंने उपयोग किया था। मेरी दृष्टि में भारत आज करीब-करीब पंचतंत्र की कहानी की स्थिति में है। एक तरफ लंगड़े बूढ़े हैं, जिनके पास
आंखें हैं, दूर तक देखने का अनुभव है। दूसरी तरफ ताकत से भरे हुए जवान हैं, जिनके पास दूर तक दौड़ने के लिए मजबूत पैर हैं, लेकिन अनुभव की आंखें नहीं हैं। ये लंगड़े नक्सलाइट हुए जा रहे हैं। और ये बूढ़े मंदिरों में भजन-कीर्तन कर रहे हैं। इन दोनों के बीच कोई कोआपरेशन नहीं है। इन दोनों के बीच कांफ्लिक्ट है, इन दोनों
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