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________________ भारत का भविष्य आत्मसात नहीं कर सकते हैं। वे कभी हमारी आत्मा नहीं बन सकते हैं। हम कपड़े तो बदल सकते हैं दूसरों से, आत्माएं नहीं बदल सकते हैं। आत्माओं की जड़ें होती हैं, रूट्स होती हैं, लंबी उसकी कथा और यात्रा होती है। अगर भारत के बूढ़ों ने भारत को दिशा दी तो भारत अपने अतीत को ओढ़ने की कोशिश करेगा। जो असंभव है। और अगर भारत के बच्चों ने भारत को दिशा दी तो भारत पश्चिम को ओढ़ने की कोशिश करेगा। जो कि उतना ही असंभव है। न तो हम पूरब के अतीत को ओढ़ सकते हैं और न पश्चिम के वर्तमान को ओढ़ सकते हैं। फिर भारत के लिए उपाय क्या है? साधारणतः ये दो ही विकल्प दिखाई पड़ते हैं। या तो हंड्रेड परसेंट भारतीय रहो, सौ प्रतिशत भारतीय, कोई होता नहीं दुनिया में, होगा तो मरा हुआ आदमी होगा। सौ प्रतिशत भारतीय बनाना चाहेगा भारत का बूढ़ा मन और या फिर सौ प्रतिशत पाश्चात्य वेस्टर्न बनाना चाहेगा भारत का नया मन। ये दोनों ही विकल्प मेरे लिए सार्थक नहीं मालूम होते। और ये दो ही विकल्प दिखाई पड़ रहे हैं। और आज जो संघर्ष है भारत में वह इन दो विकल्पों, दो अल्टरनेटिवस के बीच है। बूढ़े खींच रहे हैं पीछे की तरफ, जवान खींच रहे हैं पश्चिम की तरफ। लेकिन आगे की तरफ इनमें से कोई भी ले जाने वाला नहीं है। न तो पश्चिम की तरफ जाने से हम आगे जाएंगे और न पूरब के पीछे की तरफ जाने से हम आगे जाएंगे। आगे जाना बहुत और बात है। और उस और बात के लिए दो-तीन सूत्र आपसे कहना चाहूंगा। पहली बात तो यह कहना चाहूंगा : बच्चों के पास ज्ञान कितना ही ज्यादा हो जाए; अनुभव ज्यादा नहीं हो पाता है। नालेज कितनी भी बच्चों के पास ज्यादा हो जाए; विज़डम कभी भी ज्यादा नहीं हो पाती है। सूचनाएं कितनी ही ज्यादा मिल जाए, लेकिन जीवन के अनुभूति की गंभीरता उनके पास नहीं होती है। अगर हम आज बुद्ध को फिर से पैदा कर पाएं तो शायद मैट्रिक क्लास पास होना उन्हें बहुत मुश्किल पड़ेगा, लेकिन फिर भी, आज जमीन पर आदमी खोजना मुश्किल होगा जो उतना ज्ञानी हो। सूचनाओं में हमारे बच्चे भी उनसे परीक्षा में आगे निकल जाएंगे, लेकिन अनुभव, विज़डम, प्रज्ञा में हमारे बूढ़े भी उनके पीछे रह जाएंगे। ज्ञान के संबंध में विस्फोट हो गया है। और बच्चों के पास ज्यादा ज्ञान बढ़ता जा रहा है लेकिन अनुभव आज भी उम्र के साथ है, अनुभव आज भी वृद्ध के पास है। जीवन के अनंत-अनंत अनुभव हैं, जो सिर्फ स्कूल से नहीं मिलते; जीवन में जीने से ही मिलते हैं। जो ज्ञान यूनिवर्सिटी में मिल जाता है उस मामले में बूढ़ा पीछे पड़ गया है, पड़ता ही रहेगा अब आगे। लेकिन जो ज्ञान जीवन से मिलता है उस ज्ञान के संबंध में बूढ़े के पास अब भी अनुभूति है। वह अनुभूति उपयोग में लाई जानी जरूरी है। कहीं ऐसा न हो कि बूढ़े की इनफार्मेशन की कमी, हमारे मन में उसके अनुभव की कमी बन जाए। अगर ऐसा हुआ तो खतरा होगा।। इससे उलटा भी न हो कि सिर्फ ज्ञान का बढ़ती हुई मात्रा कहीं हमें अनुभव की प्रतीति न कराने लगे। बच्चों के पास बढ़ता हआ ज्ञान है लेकिन यह ज्ञान ठीक वैसा ही है जैसा कंप्यटर के पास होता है। ये बच्चों के दिमाग में डाली गई सूचनाएं हैं जिन्हें उन्होंने परीक्षाओं देकर तय कर दिया है कि उन्हें मालूम है। लेकिन इससे ज्ञान नहीं बढ़ता, केवल स्मृति ही बढ़ती है, केवल याददाश्त ही बढ़ती है। ज्ञान नहीं बढ़ता। ज्ञान जीवन के, निरंतर के अनुभव से धीरे-धीरे आता; उसकी कोई परीक्षा नहीं होती, उसकी कोई क्लास नहीं होती और उसके लिए कोई सर्टिफिकेट नहीं होता। Page 61 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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