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भारत का भविष्य
नहीं है, हाइजिन का बड़ा सवाल है। यह बड़ा सवाल नहीं है कि आपका किस स्त्री से संबंध है, बड़ा सवाल यह है कि उस स्त्री से आपका प्रेम है या नहीं। पुरानी दुनिया बहुत प्रेमहीन दुनिया थी। नई दुनिया बहुत प्रेमपूर्ण हो सकेगी। और इसीलिए प्रेमपूर्ण हो सकेगी कि अब सेक्स को हमने बहुत से विभाजन कर दिए हैं। दुबारा जब मैं आता हूं तो चाहूंगा कि इसी संबंध में आपसे पूरी बात करूं। क्योंकि यह बात लंबी है। कम से कम आठ दिन मैं आपसे बात करूं तब सेक्स के संबंध में आपको वैज्ञानिक दृष्टि खयाल में आ सकती है। चौथा प्रवचन
भारत का भविष्य
भारत किस ओर ?
मेरे प्रिय आत्मन् !
व्हेदर इंडिया? भारत किस ओर ? यह सवाल भारत के लिए बहुत नया है । कोई दस हजार वर्षों से भारत की दिशा सदा निश्चित रही है, उसे सोचना नहीं पड़ा है। दस हजार सालों से भारत एक अपरिवर्तित, अनचेंजिंग सोसाइटी रहा है। जिसमें कोई परिवर्तन नहीं होता रहा। एक स्टेगनेंट, ठहरा हुआ समाज रहा है। जैसे कोई तालाब होता है, ठहरा हुआ, चारों तरफ से बंद, तो हम तालाब से नहीं पूछते किस ओर ? उसकी कोई गति नहीं होती। नदी से पूछते हैं, किस ओर ? उसकी गति होती है। भारत की जिंदगी और भारत का मनुष्य आज तक एक तालाब की भांति रहा है। उसके आसपास यह सवाल कभी नहीं उठा, किस ओर ?
किस ओर का कोई सवाल न था, जाना ही नहीं था कहीं। जहां हम थे वहां हम थे। हम मनुष्यों की भांति नहीं जीए हैं पांच हजार वर्षों में, वृक्षों की भांति जीए हैं; जमीन पर गड़े हुए, जिनमें कोई गति नहीं है। ऐसे मैं सुनता हूं कि कुछ वृक्ष भी थोड़ी सी गति करते हैं। कुछ वृक्ष शायद अफ्रीका के जंगलों में वर्ष में पांच-सात फीट हट जाते हैं। लेकिन भारत उतना भी नहीं हटा है। हमने न हटने की कसम खाई हुई थी । और हम न हटने को गौरवपूर्ण समझते थे। हमारा खयाल था कि जो चीज जितनी पुरानी है, उतनी मूल्यवान है। और परिवर्तन तो तब आता है जब नई चीज को हम पुरानी चीज से ज्यादा मूल्य दें। जब हम कहें कि जो नया है वह पुराने से श्रेष्ठतर हो सकता है, तो परिवर्तन शुरू होता है। जब हम ऐसा मानते हैं कि पुराना नये से श्रेष्ठतर होता ही है, तो परिवर्तन का कोई सवाल नहीं उठता।
भारत के मन में सदा से ही पुराने का आदर रहा है। भारत के मन में जितनी पुरानी चीज हो, उतनी कीमती मालूम पड़ती है। तो भारत विकासमान एवलूशनरी नहीं, बल्कि समान है । पतित हो रहा है। यह जो दस हजार साल की कहानी है, इसमें अगर किसी ने मनु से पूछा होता – व्हेदर इंडिया ? भारत किस ओर? तो वह कहता, क्या पागलपन की बात कर रहे हैं! भारत जहां है वहां है। अडिग अपनी जगह खड़ा है। कहीं जाने का कोई सवाल नहीं। सब जाना गलत था ।
आज यह सवाल संगत है, रिलेवेंट है। हम पूछ सकते हैं — भारत किस ओर ?
यह सवाल क्यों उठा है? यह सवाल दो कारणों से उठा है। एक तो पहली बार हम जगत की संस्कृति के संपर्क में आए, पहली बार हम मनुष्य की विभिन्न संस्कृतियों और समाजों को देखे और पहचाने। तो पहली बार हमारा परिचय औरों से हुआ है। हमारा सिर्फ परिचय अपने से था । इस औरों से परिचय ने हमें संदिग्ध कर दिया है।
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