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________________ भारत का भविष्य पर कि सुखी परिवार का रहस्य दो या तीन बच्चे ! उसने कहा, साहब, यह तो मेरी नौकरी है, मुझे इससे क्या मतलब ! इसलिए मैं लिख रहा हूं। नेता की नेतागिरी है, वह समझा रहा है। दीवाल पर लिखने वाले की नौकरी है, वह लिख रहा है। न कोई सुन रहा है, न कोई समझ रहा है। मुल्क रोज बड़ा होता जा रहा है। समस्याएं रोज बड़ी होती जाएंगी। और हम सिर्फ नारेबाजी करेंगे, हड़तालें करेंगे, घेराव करेंगे। नहीं, अगर हिंदुस्तान के बच्चे समझदार हैं तो हड़ताल नहीं होनी चाहिए, पचास साल तक अब घेराव की जरूरत नहीं है। अब पचास साल तक हिंदुस्तान की सारी शक्ति सृजनात्मक हो, सारी शक्ति क्रिएटिव हो, हम कुछ निर्माण करने में लग जाएं, तो शायद पचास साल में हम इस मुल्क को सौभाग्य के दिन दे सकते हैं। इस मुल्क ने बहुत लंबी कठिनाइयां देखीं – गुलामी, गरीबी, दीनता। क्या हम भविष्य में भी इस मुल्क को कोई स्वर्ण दिन नहीं दिखाएंगे ? आप सबको देख कर आशा नहीं बंधती । क्योंकि जो हम कर रहे हैं उससे कोई आशा नहीं बंधती । और जब मैं ये सारी बातें कहता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि शायद यह सब अरण- रोदन हो सकता है। लेकिन फिर भी एक आशा है कि जब आपसे मैं कुछ कह रहा हूं तो आप सोचेंगे, हो सकता है सोचना आपके भीतर कोई दिशा का परिवर्तन बन जाए। मेरी बात मानने की जरूरत नहीं है। मैं न कोई नेता हूं न कोई गुरु, न मैं किसी को अनुयायी बनाता हूं, न किसी से मुझे कोई वोट की जरूरत है। मेरी सिर्फ एक ही आकांक्षा है कि इस मुल्क के नौजवान सोचने लगें और अगर वे सोच कर कोई कदम उठाएं तो मैं मानता हूं कि खतरा नहीं रहेगा और मुल्क के हित में और मंगल में कुछ हो सकता है। मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें। (प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं) यह सवाल एकदम जरूरी और महत्वपूर्ण है । यह बात ठीक है कि एक इंजीनियर के पास रोटी न हो, कपड़ा न हो, खोज की सुविधा न हो, काम न हो, तो वह क्या करे? लेकिन अगर पूरे देश के पास ही रोटी न हो, रोजी न हो, कपड़ा न हो, तो देश क्या करे? और इंजीनियर को कहां से रोटी-रोजी और कपड़ा दे ? जब हम यह बात कहते हैं कि अगर मेरे पास रोटी-रोजी कपड़ा नहीं तो मैं कैसे कुछ करूं । तो हमें यह भी जानना चाहिए, इस पूरे मुल्क के पास भी रोजी-रोटी कपड़ा नहीं है। ये आपको कहां से दे ? यह हल कहां होगी बात? इसको कहां से हम तोड़ें? अगर मुल्क का हर आदमी यह कहता हो कि जब मेरे पास रोटी-रोजी कपड़ा होगा तब मैं कुछ करूंगा, तो यह रोटी-रोजी कपड़ा आएगा कहां से? क्योंकि मुल्क का पूरा आदमी कहता है। कि जब कुछ होगा तब मैं करूंगा। और पूरा मुल्क ऐसा कहता है तो यह आएगा कहां से? Page 50 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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