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________________ भारत का भविष्य आज कोई भी जरूरत नहीं है कि हम सात साल तक बच्चे को रोकें स्कूल भेजने से। लेकिन पुरानी आदत काम किए चली जाती है। जब कि समस्त नई खोजें यह कहती हैं कि बच्चा अपनी चार साल की उम्र में जितना सीख लेता है, वह पूरी जिंदगी में जितना सीखेगा उसका आधा है। चार साल की उम्र में बच्चा अपनी जिंदगी का पचास प्रतिशत, फिफ्टी परसेंट ज्ञान पा लेता है। फिर बाकी अगर वह अस्सी साल जीएगा तो बाकी पचास प्रतिशत अस्सी साल में सीखेगा। जिंदगी के पहले चार साल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। लेकिन वे शिक्षा के बाहर हैं। क्योंकि हम सात साल के बच्चे को स्कूल भेजने की पुरानी आदत से मजबूर हैं। दूसरा आपको उदाहरण देना चाहूंगा कि आपने शायद ही कभी सोचा होगा कि हमने सारी दुनिया में, गणित के लिए दस के अंक ही क्यों तय किए हैं? दस तक के फिगर क्यों तय किए हैं? कोई गणितज्ञ उत्तर नहीं दे सकता कि उसका कारण क्या है। पांच से भी काम चल सकता है, छह से भी काम चल सकता है। हमने दस ही क्यों तय किए हैं? वह दस तय करना हो गया कोई लाखों साल पहले, क्योंकि आदमी ने सबसे पहले गिनती अंगुलियों से शुरू की, और सारी दुनिया में आदमियों के पास दस अंगुलियां थीं, इसलिए दस पर गिनती ठहर गई। फिर सारी संख्या हमने दस के ऊपर ही फैला ली। लीबनीज नाम के एक बड़े वैज्ञानिक ने तीन के आंकड़े से पूरा काम चला लिया। सारे गणित हल कर लिए। लेकिन कोई राजी ही नहीं। हम दस से ही हिसाब चलाए चले जाएंगे। जब कि जितने कम आंकड़े हों उतना गणित आसान और सरल हो सकता है। लेकिन वह दस अंगुलियों ने हमें उलझा दिया है। अब दस अंगुलियों से कोई संबंध नहीं रहा है। लेकिन दस का आंकड़ा तय हो गया, वह हमको पकड़े हुए है। एक तीसरा आपको उदाहरण दूं ताकि आपके खयाल में आ सके। हमने कपास से कपड़े बनाए, कोई आज से छह हजार साल पहले, इजिप्त में। कपास को तो धागा बनाना पड़ता है पहले, फिर कपड़ा बुनना पड़ता है। अब हमने एक तरह के सिंथेटिक मैटीरियल विकसित कर लिए हैं जिनके धागे बनाने की कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन हम टेरीलीन हो कि नाइलोन हो, उन सबको भी पहले धागा बनाते हैं, फिर धागे को बनते हैं। यह भी कोई पागलपन की बात है! अब नई जो वस्तु सामग्री है उससे सीधा ही कपड़ा बनाया जा सकता है। उसको अलग धागे बना कर फिर कपड़ा बनाने की कोई जरूरत नहीं है। पुरानी दुनिया में आदमी को अपने कपड़े काट कर और दर्जी से सिलवाना पड़ते थे। अब हम पूरी की पूरी कमीज ढाल सकते हैं, अब उसको दर्जी से कटवा कर सिलवाने की कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन छह हजार साल पुरानी आदत दिमाग में बैठी है। तो पहले हम धागे बनाएंगे, फिर धागों को बुनेंगे, फिर उनको काटेंगे, फिर दर्जी उनको सिएगा। अब यह सब निपट नासमझी की बात हो गई है। लेकिन पुरानी आदत हमें पकड़े हए है। अब तो कमीज और पैंट को ढाला जा सकता है। यह बड़े मजे की बात है कि आदमी इतना विकसित हो गया है, फिर भी पक्षियों के मुकाबले हमारे पास कपड़े नहीं हैं। असल में, आपने कभी खयाल किया, एक पक्षी, वर्षा हो जरा से पर फड़फड़ाते और पानी अलग हो गया। आपको अभी भी चौबीस घंटे कपड़ा सुखाने में खर्च करने पड़ रहे हैं। अब कोई जरूरत नहीं है। अब हम ऐसे कपड़े विकसित कर सकते हैं जिनको आप पानी गिरे तो आप सिर्फ छिड़क दें और पानी अलग हो जाए। लेकिन पुरानी आदत Page 33 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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