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भारत का भविष्य
तो असल में हमें आटोमेटिक यंत्र को नहीं रोकना चाहिए। हमें बेकार आदमी को पैसा मिलना चाहिए, इसकी मांग बढ़ानी चाहिए। आटोमेटिक यंत्र को रोकने की जरूरत नहीं है। वह तो खतरनाक है। देखें आप यह हमारी...लेकिन स्वभावतः चोट तो इस पर पड़ती है। आज एक कारखाने में अगर आटोमेटिक यंत्र लगेगा तो उस कारखाने के मजदूर बेकार होंगे और उसके मजदुर लड़ाई करेंगे आटोमेटिक यंत्र के खिलाफ। उनको पता नहीं कि आटोमेटिक यंत्र के खिलाफ लड़ाई अपने ही खिलाफ लड़ाई है। वे यह कह रहे हैं कि हम मजदूर ही रहेंगे। वे यह कह रहे हैं। उनको आटोमेटिक यंत्र के खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए, उन्हें लड़ना चाहिए कि हम काम छोड़ने को राजी हैं काम के छोड़ने के बदले में क्या देते हो? यह सवाल नहीं है आटोमेटिक यंत्र बराबर लाओ। जिस दिन सारी दुनिया आटोमेटिक यंत्र पर आ जाएगी उस दिन सारी दुनिया में इतना एक्सपेंशन होगा चेतना का, इतना बड़ा विस्फोट होगा कि मैं मानता हूं, लाखों बुद्ध एक साथ पैदा हो सकेंगे। असल में, बुद्ध भी बेकार घर में पैदा होते हैं, महावीर भी बेकार घर में पैदा होते हैं। जहां वे मुक्त हैं काम से, वे कोई काम नहीं कर रहे हैं। आज तक दुनिया में जो जिसको हम श्रेष्ठ चेतना कहें, वह चाहे गांधी की हो—वे भी दीवान के बेटे हैं—वे भी कोई चौबीस घंटे चर्खा चलाने वाले के घर में पैदा नहीं हो जाते। सारी दुनिया में जो चेतना विकसित होती है वह संपन्न परिवारों में या संपन्न समाजों में पैदा होती है। हमने ब्राह्मण को काम से मुक्त कर दिया था हिंदुस्तान में। उससे हम काम नहीं लेते थे, उसकी हम सेवा करते थे। उसको हमने छोड़ दिया था कि वह जो सोचना चाहे सोचे। उसको काम की जरूरत ही नहीं थी। भिक्षा का मतलब यह था कि समाज उसको देगा। तो हिंदुस्तान के ब्राह्मण ने अनूठा चीजें उपलब्ध की जो दुनिया में कोई भी नहीं कर सका। बेकार ब्राह्मण का परिणाम है और कोई कारण नहीं है उसका। अगर शूद्र को भी उतना ही बेकार किया जा सके तो शूद्र भी उतने ही बड़े महर्षि पैदा कर सकेगा जितने ब्राह्मण ने पैदा किए। वह अनएंप्लाइड लेकिन सुविधा उपलब्ध। बेकार लेकिन उसको भोजन की चिंता नहीं। तो ब्राह्मण क्या करता, उसने आकाश की बड़ी उड़ाने ली। जैसी उड़ान ब्राह्मण ले सका है, एज ए होल कम्युनिटी की तरह, ऐसी दुनिया की कोई कम्युनिटी नहीं ले सकी। ले ही नहीं सकती क्योंकि कोई कम्युनिटी इतनी बेकार नहीं रही अतीत में। दुनिया में हिंदुस्तान में पहली दफे बेकारी का प्रयोग किया है। ब्राह्मण जो है उसको हमने कहा कि तुम बेकार रहो, तुम सिर्फ सोचो। तुम गाओ, तुम चिंतन करो, तुम नाचो, तुम खोजो, हम तुमसे काम न लेंगे, न हम साबुन बनवाएंगे, न हम तुमसे कपड़ा बुनवाएंगे, न हम तुमसे खेती करवाएंगे, यह हम कर लेंगे। लेकिन कुछ
और ऊंची खोज तुम कर लाओ। तो वह ऊंची खोज कर सका है। आज पश्चिम में वैज्ञानिक काम से मुक्त हो गया है। आज उससे हम दूसरे काम नहीं ले रहे हैं। आज सिर्फ विज्ञान की, तो वह चांद पर उतर पा रहा है। गांधी जी कोई वैज्ञानिक पैदा नहीं कर सकते कभी भी। क्योंकि वह उनको जो आब्सेशन है, उनको जो रोग है वह यह है कि श्रम भगवान है। श्रम-व्रम भगवान नहीं है। श्रम सिर्फ गुलामी है, अबुद्धि है, श्रम अज्ञान है। हम जब तक अज्ञानी हैं तब तक श्रम हमको मजबूरी है, वह हमारी नेसेसरी ईविल है। उसको भगवान-वगवान कहने की जरूरत नहीं है कि श्रम देवता है और उसकी पूजा करो। कोई देवता नहीं है श्रम। हम श्रम भी इसीलिए करते हैं कि विश्राम कर सकें, और कोई कारण नहीं है। अगर दिन भर एक आदमी मजदूरी करता है तो सांझ घर आराम से लेट सकेगा इसलिए करता है, और कोई कारण नहीं है।
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