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________________ भारत का भविष्य मेरी अपनी समझ यह है कि... लेकिन अगर गांधी जी जैसी बात को हम पकड़ लें, तो हम चरखा चलाने में उलझ सकते हैं। और हमारा जो चित्त है तीन-चार हजार साल का वह राजी हो सकता है इसके लिए । क्यों ? उसके कारण हैं। हम जटिलता से भयभीत कौम हैं । और ध्यान रहे, जितनी जटिलता का हम मुकाबला करेंगे उतनी हमारी प्रतिभा विकसित होगी। एक बैलगाड़ी चला रहा एक आदमी, एक बैलगाड़ी चलाने वाले आदमी की प्रतिभा बहुत विकसित नहीं हो सकती। इसी आदमी को हवाई जहाज चलाने के लिए बिठाइए। तो आप पाएंगे कि इसकी प्रतिभा को मजबूरन विकसित होना पड़ेगा। क्योंकि हवाई जहाज चलाने के लिए जितने जटिल यंत्र को सम्हालना है उतनी बुद्धि भी चाहिए । फिर हवाई जहाज को चलाने में जितना खतरा है उतनी चेतना भी चाहिए, अवेयरनेस भी चाहिए। बैलगाड़ी में वह कोई भी नहीं । बैलगाड़ी में चलाने वाला आदमी बैल की बुद्धि से बहुत ज्यादा आगे विकसित नहीं हो सकता। क्योंकि वह चला बैल को ही रहा है न आखिर। तो उसकी भी एक, उसमें भले ही कितनी बुद्धि हो लेकिन उसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। बैल को ही चलाना है तो बैल को ही चलाने लायक बुद्धि की पुकार आती है। और हमारे पास जो समझ है वह बड़ी हैरानी की है। वह यह है कि आदमी अच्छे से समझदार समझदार आदमी अपनी बुद्धि के पंद्रह प्रतिशत से ज्यादा का उपयोग नहीं कर पाता। अच्छे से अच्छा आदमी, बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी । तो जिसको हम साधारण जन कहें वह तो तीन-चार-पांच परसेंट उपयोग करता है। वह जो अस्सी-नब्बे परसेंट बुद्धि हमारी अतिरिक्त पड़ी है उसका कैसे उपयोग होगा ? गांधी जी के पास उसकी कोई जगह नहीं है। न तो हरि भजन से हो सकता है, न राम की धुन से हो सकता है, न चरखे से हो सकता है। गांधी जी के पास मनुष्य की प्रतिभा को जगाने का कोई क्रिएटिव प्रोग्राम नहीं है । तो इसलिए मैं नहीं मानता कि वह रचनात्मक है। मैं तो मानता हूं कि रचनात्मक बातचीत के भीतर बहुत विध्वंसात्मक है। और मेरी हालत मैं उलटी मानता हूं। मेरी सारी विध्वंसात्मक बातचीत के बीच में बिलकुल रचनात्मक हूं। और मेरी रचना का अर्थ है, उनकी रचना का अपना अर्थ है । उनकी रचना को मैं रचना नहीं मानने को राजी हूं। उनका खयाल यह था रचनात्मक का कि जिस आदमी को काम भी नहीं मिलता है और खाना भी नहीं मिलता है उससे काम लेना एक समाज का धर्म बन रहा है। और क्या नजदीक से कौन सा काम देखते हैं। आज भी देखें कि आज साठ रुपया प्राप्त करने के लिए काफी लोग अंबर चरखा कातने के लिए आते हैं। सिर्फ गुजरात में यह हालत है इतना बड़ा वस्त्र उद्योग है सारे हिंदुस्तान का वस्त्र उद्योग में नौ लाख आदमी को रोजी मिलती है। अतिरिक्त और इसको आटोमेटिक कर दें तो मैं समझता हूं कि ढाई लाख से ही सारा हिंदुस्तान का कपड़ा बन जाएगा। दूसरा प्रश्न, हम देहात में रह कर देखें कि लोगों को खाने का भी मिलता नहीं है, काम नहीं है। तो काम प्राप्त करने का, काम इसलिए कि उसको रोटी चाहिए। तो वह अधिकार हम कैसे दिलवा सकेंगे ? मानो कि आप कहें, वैसे ही स्वयं संचालित युग आ गया और मैं तो एक टेक्नालॉजी का विद्यार्थी । ऐसे एक मशीन बन गई कि जिसमें सब स्वयं संचालित हैं और हिंदुस्तान की जितनी मिल हैं, वह साठ लाख से नहीं सिर्फ एक लाख से चलने लगें और जितनी रेडियो हैं इसमें सब आटोमेटिक कर दें, मेथेमेटिक आटोमेटिक कर दें, कंप्यूटर रख दें Page 186 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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