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________________ भारत का भविष्य जिंदगी का हिसाब क्या है? आप अगर साठ साल जीते हैं, जो कि हिंदुस्तान में नहीं जीते हैं। अगर गांधी जी की बात को अमेरिका मान ले तो शायद थोड़ा ठीक भी है क्योंकि उनके पास जिंदगी ज्यादा है। हिंदुस्तान के पास अब भी औसत उम्र पैंतीस साल, छत्तीस साल के करीब हैं। इक्यावन वर्ष। इक्यावन हो गया क्योंकि बच्चे कम मर रहे हैं। आपकी उम्र नहीं बढ़ गई कहीं कोई। और कुछ नहीं फर्क पड़ गया है। यह जो आदमी जी रहा है, पचास साल समझ लें, साठ साल समझ लें। एक आदमी साठ साल जीता है, उसमें कम से कम बीस साल तो सोने में जाते हैं, नींद में चले जाते हैं। बचते है चालीस साल। चालीस साल में, अगर गांधी जी की व्यवस्था मानी जाए तो आठ घंटे चौबीस घंटे में सोने में चले जाते हैं। नहाना, खाना, कपड़े धोना, साबुन बनाना, खेती करना, चरखा चलाना, रूई ओटना। अगर यह सब आदमी करे तो मैं मानता हूं कि जरूर उसको कपड़े भी मिल जाएंगे। तीस गज भी मिल जाएंगे, खाना भी कामचलाऊ मिल जाएगा, साबुन से भी कपड़ा धोने लायक साबुन भी बना लेगा, अपना जूता भी तैयार कर लेगा। लेकिन यह आदमी यही करते मरेगा। इस आदमी के पास लीजर टाइम नहीं बचने वाला है। उसी में से मूल्य खड़ा होगा? कोई मूल्य खड़ा नहीं होगा। इसमें से सिर्फ एक जानवर खड़ा होगा, आदमी नहीं। आदमी और जानवर में इतना ही फर्क है कि जानवर के पास लीजर टाइम नहीं है। वह अपने खाने-पीने की फिक्र में पूरा वक्त गुजार देता है। एक कुत्ता है वह दिन भर घूम रहा है। वह बहुत रचनात्मक बुद्धि का है, उसके पास लीजर टाइम नहीं है। या तो सोता है या खाने की तलाश करता है, या अपनी पत्नी को या प्रेयसी को भोगता है। बस ये तीन काम हैं उसके पास। अगर गांधी जी की बात पूरी मानी जाए तो आदमी बच्चे पैदा करेगा, कपड़े पैदा करेगा, खाना बनाएगा। लेकिन लीजर टाइम उसके पास नहीं, और लीजर के वे खिलाफ हैं। उसके पास खाली समय नहीं बचेगा। दुनिया का सारा विकास खाली समय में हुआ है। चाहे संगीत हो, चाहे साहित्य हो, चाहे धर्म हो, चाहे विज्ञान हो, यह खाली लोगों की खोज है। जिनके पास कोई काम नहीं बचता; जिनके पास काम के अतिरिक्त समय है। अब वे क्या करें? इसमें वे जुआ खेल सकते हैं, ध्यान भी कर सकते हैं। वह दूसरी बात है कि वे क्या करेंगे। जुआ भी खाली समय में आता है, ध्यान भी खाली समय में आता है, प्रार्थना भी खाली समय में आती है, भगवान भी खाली समय में आता है। जिन दिनों में कोई मुल्क के पास खाने, कपड़े, पत्नी, बच्चों के अलावा समय बचता है उन दिनों में उस मुल्क की चेतना विकसित होती है। Page 183 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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