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भारत का भविष्य
लेकिन समझ भी थी, सुविधा भी थी, देश के स्रोत संपन्न थे। लेकिन हमने जो फिलासफी पकड़ी, हमने जो जीवन-दर्शन पकड़ा वह सादगी का था । उसने हमें नुकसान पहुंचाया।
यह सब इस बात पर निर्भर करता है, दो चीजों पर निर्भर करता है। भविष्य को देखते हैं आप या सिर्फ वर्तमान को देखते हैं? अगर सिर्फ वर्तमान को देखते हैं तो गांधी की करुणा बहुत सार्थक मालूम पड़ेगी। लेकिन अगर भविष्य को देखते हैं तो बहुत खतरनाक और पायज़नस, विषाक्त मालूम पड़ेगी। पर मुझे उससे प्रयोजन ही नहीं है। यानि मैं यह कहता हूं, एक आदमी करुणा करे यह उसका मजा होगा। लेकिन इस करुणा का विस्तीर्ण परिणाम क्या होगा? और इसमें गांधी जी से मुझे लेना देना नहीं है। असल में, मेरी बात समझने में कठिनाई होती है। असली सवाल तो हमारी दृष्टि का है। गांधी जी उस दृष्टि को फिर मजबूत कर जाते हैं।
रचनात्मक काम के बारे में जब आप कहते हैं तो कोई ऐसा खयाल नहीं है कि देश में जितना कपड़ा है उससे कम कपड़ा मिले। जब देश को ग्यारह गज कपड़ा मिलता था तब गांधी जी ने तीस गज कपड़ा हरेक को मिलना चाहिए ऐसा विचार कहा। लेकिन वह प्राप्त करने के लिए साधन कौन से इस्तेमाल करें। आज देश में देखेंगे तो दो पंचवर्षीय योजना के बाद सत्रह गज से ज्यादा कपड़ा हम उत्पन्न नहीं कर सकते हैं क्योंकि उसका बिक्री नहीं हो सका है। तो गांधी ने तो ऐसा कहा कि जिनको कपड़ा पहनने को नहीं मिलता है वह कपड़े वाला हो । उसके लिए उत्पादन के साधन जो उनको मिले उन्होंने लिए, उस जमाने में चरखा मिला तो चरखा लिया। अब हमें चरखा मिला तो एक आदमी सिर्फ बीस घंटा काम करे, तो भी उसको पांच-सात गज कपड़ा मिल सकता है। ऐसे औजार स्रोत की खोज हुई है। इसका मतलब आपका जो यह खयाल है कि रचनात्मक काम देश को दरिद्र बनाने के लिए है या नहीं ।
नहीं, रचनात्मक काम की बात ही नहीं की है अभी । मैंने जो बात की है वह सादगी के लक्ष्य की बात की है । रचनात्मक काम की बात मैं अलग से आपसे करता हूं। आपने जो सवाल उठाया था वह रचनात्मक से संबंधित नहीं था। जो मैंने बात की है वह यह की है कि सादगी मेरे लिए लक्ष्य नहीं है। मेरे लिए जीवन को जितने वैभव और संपन्नता से जीया जा सके उतना ही मैं मानता हूं उचित है। क्योंकि उसके वैभव और संपन्नता से जीने की जो अभीप्सा है वह हमारी सोई हुई शक्तियों को चुनौती देती है और हम आगे बढ़ते हैं।
कोई अमेरिका में इतनी संपत्ति पैदा हो जाए और हम भीख मांगते रहें। इसमें कुछ अमेरिका की जमीन की विशेषता नहीं, सिर्फ अमेरिका के मस्तिष्क की विशेषता है। क्योंकि वह सादगी से जीने को राजी नहीं है । और मजे की बात यह है कि वह जो चीज पा लेता है उसी को सादगी मानने लगता है, फौरन । और आगे बढ़ने की कोशिश करने लगता है। अगर किसी के पास बहुत बड़ी गाड़ी है तो वह भी सादी हो जाती है, और बड़ी गाड़ी चाहिए। यह तो मैंने सादगी... रचनात्मक जिसको आप कह रहे हैं, मैं नहीं मानता कि रचनात्मक है। क्योंकि कारण क्या है, पहली तो बात यह है कि अगर एक आदमी, गांधी जी ने जो उपाय सुझाए चरखा या तकली या उस तरह के सामान्य यंत्र जो आदमी एक - एक आदमी मेनेज कर सके ।
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