________________
भारत का भविष्य
होगा। जिसे पूरे समय दोनों तरफ गिरने से बचाना है अपने को। गिरना आसान है क्योंकि गिरते ही फिर संतुलन के श्रम करने की जरूरत न रह जाएगी। पुराने की तरफ भी गिर जाना आसान है, नये की तरफ भी गिर जाना आसान है, लेकिन इस जीवन की रस्सी पर सध कर चलना कठिन है। और मुझे ऐसा निरंतर डर लगाता है कि पुरानी पीढ़ी पुराने की तरफ गिर कर संतुलन के लिए जो श्रम करना है उसकी फिक्र छोड़ देती है। नई पीढ़ी नये की तरफ गिर कर संतुलन के लिए जो प्रयत्न करना है उसका प्रयत्न छोड़ देती है। इन दोनों में बहुत फर्क नहीं है, ये दोनों संतुलन के श्रम से बचने की कोशिश में लगे हैं। भारत को नया वे लोग कर पाएंगे जो इन दोनों चुनावों को इनकार कर दें और जो बीच में, बैलेंस में, संतुलन में खड़े होने के लिए राजी हो जाएं। असल में वह जो गोल्ड मीन है, वह जो बीच है, वह जो मध्य है वही जीवन है। सदा ही, सदा दो अतियों के बीच मध्य को चुन लेना बुद्धिमानी है। सुना है मैंने कि कनफ्यूशियस एक गांव में गया और उस गांव के बाहर ही गांव में प्रवेश के पहले एक आदमी उसे मिल गया और उस आदमी ने कहा, आप जरूर हमारे गांव में आएं और हमारे गांव में भी एक बहुत बुद्धिमान आदमी है, एक बहुत वाइज मैन है। आप उससे मिल कर बहुत खुश होंगे। कनफ्यूशियस ने कहा कि उसे बहुत बुद्धिमान क्यों कहते हो? अगर तुम मुझे कुछ उसके संबंध में बताओ तो अच्छा होगा? तो उस आदमी ने कहा, वह इतना बुद्धिमान है कि वह एक कदम रखने के पहले तीन बार सोचता है। कनफ्यूशियस ने कहा कि फिर मैं उससे न मिलूंगा। उस आदमी ने कहा, क्यों? कनफ्यूशियस ने कहा कि अगर वह एक ही बार सोचता होता तो मैं कहता कि वह थोड़ा कम बुद्धिमान है, अगर वह तीन बार सोचता है तो मैं कहूंगा वह थोड़ा ज्यादा बुद्धिमान है, अगर वह दो ही बार सोचता होता तो मैं कहता, वह बुद्धिमान है। और कम बुद्धिमान भी खतरे में पड़ जाते हैं और ज्यादा बुद्धिमान भी खतरे में पड़ जाते
असल में बुद्धिमान होना एक संतुलन है। बुद्धिमान होना एक संतुलन है। अति बुद्धि से भी बचना पड़ता है और अति अबुद्धि से भी बचना पड़ता है। असल में दो एक्सट्रीम से बच जाना बुद्धिमानी है। तो कनफ्यूशियस ने कहा, मैं न मिलूंगा, क्योंकि अगर वह तीन बार सोचता है तो थोड़ा जरा ज्यादा हो गई बात, जरा पेंडुलम ज्यादा घूम गया आगे की तरफ। घड़ी है उसमें बाएं से दाएं पेंडुलम भागता रहता है। ठीक हमारा मन भी ऐसा ही भागता रहता है घड़ी के पेंडुलम की तरह। पुराने से हम नये पर जा सकते हैं और नये से हम पुराने पर जा सकते हैं। लेकिन जिंदगी बीच में है। और जो बीच में होता है उसको बड़े फायदे हैं क्योंकि वह पुराने के भी उतने ही निकट होता है जितना नये के निकट होता है, वह पुराने से भी उतना ही दूर होता है जितना नये से दूर होता है। उसके लिए चुनाव आसान है। और जो बीच में होता है वह रिएक्शनरी नये नहीं होता, वह किसी चीज के खिलाफ नहीं जा रहा होता।
और एक और मजे की बात है कि जब घड़ी का पेंडुलम बाएं से दायीं तरफ जाता है तो दिखाई तो पड़ता है कि उलटा जा रहा है, लेकिन आपने कभी खयाल न किया होगा, बाएं से दाएं तरफ जाता हुआ पेंडुलम फिर बाएं
Page 163 of 197
http://www.oshoworld.com