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________________ भारत का भविष्य बूढ़ा होना जैसा दुखद है वैसे किसी राष्ट्र के बूढ़े हो जाने का भी दुख है । बूढ़ा आदमी चाहे तो अपने बुढ़ापे को झुठलाने की कोशिश कर सकता है। लेकिन झुठलाने से बुढ़ापा कम नहीं होता। भारत भी इधर पचास वर्षों से निरंतर यह बात इनकार करने की कोशिश कर रहा है कि हम पुराने हो गए हैं। इस इनकार करने की उसने कुछ मानसिक व्यवस्था की है वह समझना जरूरी है। एक तो भारत यह कहता है कि जो भी श्रेष्ठ, जो भी सत्य, जो भी सुंदर है वह उसे उपलब्ध ही हो चुका है। इसलिए नये होने की अब कोई जरूरत नहीं है। विकास की जरूरत तो वहां है जहां अविकसित हो कोई। लेकिन जिस देश को यह खयाल हो कि विकास हो ही चुका है, वहां अब विकास के परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है। हमें विकास न करना पड़े, हमें परिवर्तन न करना पड़े, इस बात को इनकार करने के लिए हम यह मान कर बैठ गए हैं कि हमने सब पा लिया है। यह भ्रम हम पाल सकते थे अगर दुनिया के हम संपर्क में न आए होते। अपने-अपने कुएं में हर आदमी यह सोच सकता है कि उसने सब पा लिया अपने कुएं में बंद, अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता के घेरे में घिरे हुए, इस बात को मानने में बहुत कठिनाई न थी कि हम पूर्ण हो गए हैं। लेकिन चारों तरफ दुनिया की हवाओं ने हमारी पूर्णता की नींद को पूरी तरह तोड़ दिया है । हजार वर्ष की लंबी गुलामी ने हमें यह भी बता दिया है कि हमारी शक्ति कितनी है। सैकड़ों वर्ष की दरिद्रता ने हमें यह भी बता दिया है हमारी सामर्थ्य, हमारी संपदा कितनी है। दुनिया भर के सामने भीख मांग कर हम किसी भांति जिंदा हैं उसने हमें यह भी बता दिया है कि हमारी समझ कितनी है। सारी दुनिया ने हमें एक ऐसी स्थिति में खड़ा कर दिया है जहां हमें यह अहसास करना अनिवार्य हो गया है कि हम बूढ़े हो गए हैं, पुराने हो गए हैं। और नये हुए बिना जीवन का अब कोई रास्ता आगे नहीं हो सकता है। लेकिन हम इसे इनकार अगर करें तो हम इनकार करते रह सकते हैं। हम मानते रह सकते हैं कि हम पूर्ण हो गए हैं। और डर यही है कि हजारों वर्ष की अपनी मान्यता को हम जिंदगी के नये तथ्यों के सामने आंख बंद करके मानते ही चले जाएं। उस हालत में सिवाय मृत्यु के भारत के सामने कोई रास्ता न रह जाएगा । और इसे मृत्यु कहना भी ठीक न होगा, इसे आत्मघात, स्युसाइड कहना ही ठीक होगा। क्योंकि इसके लिए और कोई जिम्मेवार नहीं है हम ही जिम्मेवार होंगे। दूसरी बात, भारत ने कभी भी नये की स्वीकृति नहीं की है। असल में भारत मानता ही नहीं रहा कि पृथ्वी पर कुछ नया भी होता है। हम मानते रहे हैं कि पृथ्वी पर चांद-तारों के नीचे जो भी है सब पुराना है। इसलिए भारत ने इतिहास नहीं लिखा, हिस्ट्री नहीं लिखी । हमें कोई हिस्टारिक सेंस, इतिहास का बोध भी नहीं है । न लिखने का कारण था, क्योंकि अगर दुनिया में नई चीजें घटती हों तो इतिहास लिखने का कोई अर्थ है। क्योंकि पुरानी चीजें दुबारा नहीं घटेंगी उनकी स्मृति रखना जरूरी है। लेकिन अगर वही - वही चीजें रोज-रोज घटती हों तो इतिहास बेमानी है। इसलिए भारत ने कोई इतिहास नहीं लिखा। न तो हम राम के बाबत निश्चित हो सकते हैं कि वे कभी हुए, न हम कृष्ण के बाबत निश्चित हो सकते हैं कि वे कभी हुए। हम कभी सुनिश्चित रूप से घोषणा नहीं कर सकते। क्योंकि हमने कोई इतिहास लिख कर नहीं रखा। नहीं रखा इसीलिए कि जो बातें बार- बार हुई हैं उन्हें लिखने कि क्या जरूरत है? जब सभी कुछ पुराना है पृथ्वी पर तो इतिहास की कोई जरूरत नहीं है। Page 158 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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