SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत का भविष्य बच्चों को विश्वास की कोई शिक्षा देनी की जरूरत नहीं। शिक्षा दी जानी चाहिए विचार करने की कला, चिंतन करने का ढंग, मनन करने का मार्ग, ध्यान करने की व्यवस्था, ताकि तुम जान सको कि सत्य क्या है। और जिस दिन सत्य की थोड़ी सी भी झलक मिलती है, एक किरण भी मिल जाए सत्य की, आदमी की जिंदगी दूसरी हो जाती है, वह जिंदगी धार्मिक हो जाती है। विश्वासी आदमी झूठा आदमी है, डिसेप्टिव है वह, आत्मवंचक है। इसलिए सारा मुल्क धोखे में पड़ गया। और चौथी बात, अब तक हमें यह समझाया जाता रहा है कि सत्य दूसरे से मिल सकता है, गुरु से मिल सकता है. ज्ञानी से मिल सकता. ग्रंथ से मिल सकता है. शास्त्र से मिल सकता है। यह बात बिलकल ही गलत है। सत्य किसी से किसी दसरे को नहीं मिल सकता। सत्य खद ही खोजना पड़ता है। सत्य कोई इतनी सस्ती बात नहीं है कि कोई आपको दे दे। सत्य तो खुद के प्राणों की सारी शक्ति को लगा कर ही खोजनी पड़ती है। वह यात्रा खुद ही करनी पड़ती है। आपकी जगह कोई मर सकता है? आपकी जगह कोई प्रेम कर सकता है? कभी आपने सोचा कि आपकी जगह कोई और प्रेम कर ले और आप प्रेम का आनंद ले लें? कभी आपने सोचा कि कोई दूसरा मर जाए और आपको मृत्यु का अनुभव हो जाए? यह कैसे हो सकता है? जो आदमी मरेगा वह का अनभव करेगा। जो आदमी प्रेम में जाएगा वह प्रेम का आनंद लेगा। लेकिन हमने एक बड़ा धोखा दिया। हमने मत्य और प्रेम से भी सत्य को सस्ता समझा। हम यह समझते रहे कि सत्य दूसरे को मिल जाएगा और वह हमको दे देगा। महावीर हमको दे देंगे, बुद्ध दे देंगे, राम और कृष्ण हमको दे देंगे। कोई किसी को सत्य नहीं दे सकता। अगर सत्य दिया जा सकता होता तो आज तक सारी दुनिया में सबके पास सत्य पहुंच गया होता। क्योंकि महावीर की करुणा इतनी है, बुद्ध की और क्राइस्ट का प्रेम इतना है कि अगर वे दे सकते, तो वह बांट दिया होता। लेकिन नहीं; वह नहीं दिया जा सकता। वह एक-एक आदमी को खुद ही खोजना पड़ता है। लेकिन हमें अब तक यही सिखाया गया है कि खुद खोजने का कहां सवाल है। गीता में लिखा है, रामायण में उपलब्ध है, उपनिषद में छपा हुआ है, समयसार में है, बाइबिल में है, कुरान में है, वहां से ले लें। पाठ कर लें, कंठस्थ कर लें सूत्रों को, सत्य मिल जाएगा। इससे एक झूठा धर्म पैदा हुआ। जो शब्दों का धर्म है, सत्यों का धर्म नहीं। शास्त्रों से, गुरुओं से शब्द मिल सकते हैं सत्य नहीं मिल सकता। सत्य तो स्वयं ही खोजना पड़ता है। और एक-एक आदमी को अपने ही ढंग से खोजना पड़ता है। और एक-एक आदमी को अपनी ही पीड़ा से जन्म देना पड़ता है। जैसे मां को प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ता है, ताकि उसका बच्चा पैदा हो सके। ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति को एक साधना से गुजरना पड़ता है, ताकि उसका सत्य पैदा हो सके। सत्य उधार और बारोड नहीं है। लेकिन हमारा मुल्क अब तक यही मानता रहा कि सत्य किताब से मिल सकता है, शास्त्र कंठस्थ कर लेने से मिल सकता है। कृष्ण को मिल चुका अब हमें खोजने की क्या जरूरत है! अब हम गीता को कंठस्थ कर लें, बस हमें मिल गया। तो गीता से मिल जाने के शब्द और शब्द हो जाएंगे कंठस्थ और ऐसा भ्रम पैदा होगा कि मैंने भी जान लिया। लेकिन मैंने बिलकुल नहीं जाना! गीता के शब्द स्मृति में भर गए हैं उन्हीं को मैं दोहरा रहा ह, दोहरा रहा है। मैंने क्या जाना है? मेरा अपना अनुभव क्या है? मेरा अपना एक्सपीरिएंस क्या है? इसलिए इन चार सत्रों के आधार पर भारत धार्मिक दिखाई पड़ता है और धार्मिक नहीं है। Page 156 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy